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हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत स्पीति घाटी में मारुति जिम्नी को ड्राइव करने का कैसा रहा हमारा अनुभव, जानिए यहां

संशोधित: फरवरी 26, 2024 06:28 pm | भानु | मारुति जिम्नी

एक नॉर्मल वर्किंग डे था और मैं एक ब्रेक लेकर छुट्टियों पर जाने के बारे में सोच रहा था। हां मैं इतना जरूर जानता हूं जो मैं सोच रहा था वो सच भी साबित हो सकता है। जैसे ही मैं काम पर निकला तो मुझे मेरे एक सीनियर अरुण का कॉल आया और उसने कहा “स्पिति चलेगा? जिम्नी से?” मैंने कोई सवाल किए बिना हां कह दिया। एक सप्ताह के बाद मारुति सुजुकी के रॉक एन रोड एसयूवी एक्सपीरियंस के तहत हमनें 7 दिन तक मारुति जिम्नी को स्पीति घाटी में ड्राइव किया और लौट आए।

यहां से शुरू हुआ हमारा सफर

लोकेशंस और ट्रैवल प्लान के बारे में जानकारी लेने के बाद हमारा सफर चंडीगढ़ से शुरू हुआ। हमनें जिम्नी की रियर सीट्स को फोल्ड कर अपना लगेज रखने के लिए जगह बनाई क्योंकि हमनें सोचा था कि इसके बूट में हमारे बड़े सूटकेस नहीं आएंगे मगर बाद में हमें पता चला कि हम गलत सोच रहे थे।

हम चंडीगढ़ से​ निकलकर हाईवे पर जा पहुंचे। ये केवल वो समय था जब जिम्नी को चौथे और पांचवे गियर पर ड्राइव करने का हमेंं मौका मिला था। जैसे जैसे दिन आगे बढ़ा सड़के संकरी होती चली गई और अब लंबी लंबी हाईवे रोड खत्म होकर पहाड़ों के घुमावदार रास्ते आना शुरू हो गए।

मगर हम इस चुनौती का सामना करने के लिए रोमांचित थे। मैंने और अरूण ने कार ड्राइव की और क्योंकि मैं पहली बार ऐसे रास्तों पर कार ड्राइव कर रहा था इसलिए उस दिन ज्यादातर अरूण ने ही कार चलाई। मगर मुझे मालूम था कि कल मुझे जिम्नी ड्राइव करनी है और मैं इस चीज का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। 10 घंटे ड्राइव करने के बाद हम नारकंडा पहुंचे और हमनें वहीं रूकने का फैसला किया।

इस ड्राइव में हम अकेले नहीं थे। हमारे कारवां में 15 से ज्यादा कारें थी और यहां एक साफ नियम था कि 'लीड करने वाली कार को कोई ओवरटेक नहीं करेगा'। हालांकि ये नियम टूटा भी मगर उस बारे में आपको आगे बताएंगे। नारकंडा से हमें ताबो जाना था जो कि एक लंबा सफर होने वाला था और इस रूट पर कोई हाईवे नहीं था ना ही कोई 4 लेन रोड और यहां बस केवल संकरे पहाड़ी रास्ते जिनपर गाड़ी चलाना काफी मुश्किल होता है।

ज्यादा अपशिफ्टिंग नहीं हुई यहां

अगली सुबह हमनें फिर अपना सामान जिम्नी में रख लिया और इसबार हम जानना चाहते थे कि क्या हम बिना रियर सीट्स को फोल्ड किए 2 बड़े सूटकेस इसके बूट में रख सकते हैं कि नहीं और ऐसा मुमकिन हो गया। जिम्नी में हमारा सामान बड़े आराम से आ गया और उसके बाद भी थोड़ी जगह बच गई।

ऐसी सड़कों पर ड्राइव करने के लिए आपके पास कुछ स्किल्स होनी चाहिए जो कि अरूण के पास थी और मुझे उसे सीखने की जरूरत थी। एक अच्छे सीनियर होने के नाते उन्होनें मुझे कॉर्नर्स पर रहना सिखाया। हां मैं हजारों फीट की उंचाई पर पहाड़ो के संकरे रास्तो पर कॉर्नर लेना सीख रहा थ जहां हवा भी पतली हो जाती है और ये ऐसी जगह थी जहां कुछ सीखना वैसे ही एक सही परिस्थिती नहीं है मगर मैनें सीखना जारी रखा।

अब कार अरूण के ड्राइव करने की बारी थी और मैंने लगातार ये बात नोट की वो उसे सेकंड गियर में ही चला रहे थे। हमारी मैनुअल जिम्नी अब ऑटोमैटिक वेरिएंट की तरह चल रही थी। सेकंड गियर में रखने का कारण ये था हमें वो स्पीड और मोमेंटम चाहिए था जो हमें कॉर्नर पर रख सके और कार में पावर की कमी महसूस नहीं हो। जिम्नी के इंजन और इसकी राइड क्वालिटी ने हमें बिल्कुल निराश नहीं किया और हमें जरूरत के हिसाब से पावर मिलती रही और इसका राइड कंफर्ट तो लाजवाब था ही।

12 घंटे की लंबी ड्राइव के बाद हमे ताबो पहुंचना था और हम आधिकारिक तौर पर स्पीति घाटी में प्रवेश करने जा रहे थे। काजा यहां से सिर्फ 50 किलोमीटर ही दूर था जो हमारी मुख्य मंजिल भी थी। और हमे अगले दिन यह सफर तय करना था।

-22 डिग्री में आ गए हम

जैसे ही हम ताबो पहुंचे तो वहां पारा तेजी से नीचे गिरा। जिम्नी के अंदर रह गई हमारी पानी की बोतलों में अगली सुबह तक बर्फ जम चुकी थी। काफी सारे कपड़े पहन लेने के बाद भी मैं फिर भी कांप रहा था। दूसरी तरफ अरूण को इस ठंड से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

ताबो से निकलने के बाद हमें और चढ़ाई चढ़नी थी और हम 13000 फीट की उंचाई पर थे। जिम्नी के लिए ये ड्राइव कोई चैलैंज नहीं था। काजा अब कुछ ही किलोमीटर दूर था और ये काफी खूबसूरत जगह थी। हालांकि यहां ​बर्फ नहीं गिरी हुई थी इसलिए ये जगह एकदम सूखी और भूरी नजर आ रही थी।

बर्फ की कमी के कारण एक समस्या और हमारे सामने थी। ऐसी जगहों पर आपको ठंड तो महसूस होगी और ऐसे तापमान में यदि बर्फ हो तो वो थोड़ी गर्मी जमा कर लेती है जिससे आप बेहतर महसूस करने लगते हैं। हालांकि यहां तो मीलों तक बर्फ नहीं थी इसलिए ठंड ज्यादा ही लग रही थी। रात के 1 बजे हम इन खूबसूरत पहाड़ों और अनगिनत तारों की पूरी श्रंखला को निहार रहे थे। ये इतनी खूबसूरत जगह थी कि हमें तस्वीरे लेने का भी मन नहीं हो रहा था।

पहले तो हमें हमारे हाथ स्थिर रखने थे जो कि आसान नहीं था क्योंकि हम खुद कांप रहे थे। दूसरी बात ये कि यदि हम हमारे हाथ स्थिर भी रख पाए तो हमें फोटो क्लिक करने के लिए ग्लव से अंंगूठा बाहर निकालना पड़ रहा था। जब मैंने ये पहली बार किया तो मुझे ही मालूम है कि कितना गंदा फील हुआ। ऐसा लग रहा था मानो कि मेरा अंगूठा बिल्कुल जम गया है जो अभी टूट के गिर जाएगा।

जैसे ही हम होटल वापस लौटे और रजाई में घुसे तब मैंने टेंपरेचर चैक किया जो माइनस 16 डिग्री था। इससे पहले मैं कभी ऐसे टेंपरेचर में नहीं रहा और ये मेरे लिए काफी नया अनुभव था जो बेहद ही दर्दनाक भी रहा। उसी दिन देर रात टेंपरेचर माइनस 22 डिग्री पर आ गिरा और इस पॉइन्ट पर आपके कपड़े,रजाई और हीटर भी आपका साथ देने में सक्षम नहीं होते। जैसे तैसे हमें नींद आई क्योंकि हमें अगले दिन के लिए बहुत सारी एनर्जी चाहिए थी।

आंख को सुकून देने वाले नजारे

इस सफर के चौथे दिन हमें अब बस स्पिति वैली को एक्सप्लोर करना था। यहां देखने के लिए काफी जगह थी और हमनें दुनिया के सबसे उंचे पोस्ट ऑफिस हिक्किम पोस्ट ऑफिस और दुनिया के सबसे उंचे गांव कोमिक का विजिट किया। मगर यहां पहुंंचने से पहले मैं ये सोच रहा था कि मैं कहां से आया हूं।

चंडीगढ़ से नारकंडा,नारकंडा से ताबो और ताबो से काजा तक मैंने आज से पहले इतनी खूबसूरत जगह देखी ही नहीं थी। मारुति ने ना केवल हमें इन सड़कों पर ड्राइव करने का मौका दिया बल्कि ढेर सारी यादें भी दी। बर्फ से ढके खूबसूरत पहाड़ और हमारे रूट के संग संग बहती नीले रंग की साफ सुथरे पानी की नदियां और खूबसूरत जगहों की यादें जिनके बारे में मैनें सोचा था कि ऐसी जगह तो भारत में शायद ही होती होंगी।

मगर कुछ और खूबसूरत जगह भी हमारा इंतजार कर रही थी। काजा से हिक्किम पोस्ट ऑफिस हमें काफी संकरे रास्तों पर चलना था जो कि मिट्टी और चट्टानों का एक सिंगल लेन पैच था। क्या ये खतरनाक भी था?। हां लेकिन इसका अपना एक रोमांच था। इस पोस्ट ऑफिस में पूरे साल काम होता है और ये 14,000 फीट की उंचाई पर स्थित है। यहां हमारे पास कुछ खाना था और लिखे हुए पोस्टकार्ड्स थे जो हमनें यहां से हमारे खास लोगों को भेजे।

हम कोमिक से भी आगे की तरफ चल पड़े जो कि 15,000 फीट की उंचाई पर स्थित एक गांव था। ऐसा समझ लीजिए कि हम माउंट एवरेस्ट की उंचाई के आधे हिस्से तक पहुंच गए थे। इस उंचाई पर आपको पर्याप्त ऑक्सिजन नहीं मिलती है और आपको सांस लेने में तकलीफ होती है। मगर हमारे लिए ये समस्या कुछ खास नहीं थी ​क्योंकि नजारा देखकर हमारी सांसे पहले ही रूक गई थी।

ये गांव अपने आप में इतना खूबसूरत था जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था। यहां एक मॉनेस्ट्री थी जिसमें बौद्ध भिक्षु मौजूद थे और यहां एक रेस्टोरेंट भी था जहां लिखा था कि ये 'दुनिया की सबसे उंची जगह पर बना रेस्टोरेंट है' और यहां एक मकान भी बना हुआ था जिसमें लोग रह रहे थे। मगर असली खूबसूरती तो हमारे सामने नजर आ रहा बर्फ से ढका हुआ पहाड़ था।

जहां हम थे वहां तो बर्फबारी नहीं हुई मगर मुझे सामने नजर आ रही बर्फ देखने का बड़ा मन था। ये बर्फ से ढके हुए पहाड़ मुझे काफी छोटा महसूस करा रहे थे। ये चट्टानों और मिट्टी के बड़े से पहाड़ देखनें में वाकई खूबसूरत लग रहे थे।

वापसी

काजा में हमारा दिन खत्म होने जा रहा था और हमें फिर से चंडीगढ़ लौटना था। इस सफर में हमें दो दिन लगने वाले थे और बीच में हमें रामपुर रूकना था। हम सुबह जल्दी उठे और बूट में लगेज रखा और एकबार फिर से काजा के खूबसूरत नजारों को अपनी आंखो में बसा लिया।

10 घंटे में हम रामपुर पहुंचे और इस ड्राइव के दौरान मैं और अरूण काजा वापस आने की बात कर रहे थे। स्पीति वैली में हमनें काफी खूबसूरत समय बिताया और यहां फिर से लौटने की प्लानिंग भी कर ली। कई लोगों के लिए ऐसे रोमांचक सफर पर जाना जीवन में मिलने वाला एकमात्र मौका होता है और मारुति का शुक्रिया के उन्होनें हमें ये मौका दिया।

अब हम जल्द से जल्द चंडीगढ़ लौट जाना चाहते थे। हमनें इस ट्रिप में काफी मजे किए जिसकी थकान अब महसूस हो रही थी और मुंबई के लिए फ्लाइट लेने से पहले हम आराम कर लेना चाहते थे। हमनें सोचा यदि हम कॉन्वॉय के साथ ड्राइव ​करेंगे तो चंडीगढ़ पहुंचने में हमें काफी समय लग जाएगा और फिर हमें ज्यादा आराम का मौका नहीं मिलेगा।

ऐसे में हमनें उस इस ड्राइव के प्रबंधकों से बात की और उनसे कॉन्वॉय से आगे बढ़ने का निवेदन किया। उन्हें मालूम था कि हम ड्राइव कर सकते हैं और हमपर नजर बनाकर रखने की जरूरत नहीं है इसलिए हमनें 'लीड कर रही कार को ओवरटेक ना करें' का रूल तोड़ दिया। दूसरे लोगों से पहले हम रामपुर से निकल गए और जल्द ही चंडीगढ़ भी पहुंच गए।

आखिरकार हमारा सफर खत्म हुआ और पहाड़ों से दूर अब हम अपने अपने शहरों की ओर लौट आए। अब वो ताजा हवा जा चुकी थी और आसमान भी साफ नजर नहीं आ रहा था। तब मुझे ये अहसास हुआ कि स्पीति कितना सुंदर था और मुझे जिम्नी ड्राइव करने में कितना मजा आया।

मैं शुक्रगुजार हूं मैं इस सफर पर जा पाया और पहाड़ों पर ले जाने के लिए मारुति जिम्नी काफी शानदार कार है। इसमें हमें कोई समस्या नहीं आई और शार्प टर्न लेने के लिए पावर की कोई कमी भी महसूस नहीं हुई। चाहे पहाड़ हो,मिट्टी हो,कीचड़ हो या पानी हो ये एसयूवी कहीं नहीं अटकती है। जब जिम्नी ऐसी परिस्थितयों का सामना कर रही थी तब हम केबिन में कंफर्टेबल थे भले ही रास्ता कितना भी खराब क्यों ना हो।

सच में ये जीवन में एक ही बार मिलने वाला शानदार मौका था मगर मैं ऐसा तब तक करते रहना चाहूंगा जब तक मुझे ये ना पता चले कि मुझे अपने शहरी जीवन में वापस लौटना है।

द्वारा प्रकाशित

भानु

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