आखिर क्यों रतन टाटा को इतनी पसंद है नैनो कार, एक बड़े इवेंट में इसी में सवार होकर हुए शरीक
एक समय टाटा नैनो भारत की सबसे सस्ती कार हुआ करती थी। हालांकि ये कार इंडियन मार्केट में सिर्फ 11 साल ही टिक पाई जो मारुति ऑल्टो और 800 के मुकाबले काफी कम है। ये दोनों कारें 1980 के दशक से मार्केट में बनी हुई थी और ऑल्टो तो अब भी उपलब्ध है। 2019 तक टाटा नैनो का प्रोडक्शन किया जा रहा था जहां अपने अंतिम समय में इस कार की बिक्री दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पा रही थी। उस समय टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे रतन टाटा का ये ड्रीम प्रोजेक्ट था और आज भी पूर्व चेयरमैन इस कार का रोजाना इस्तेमाल करते हैं।
तस्वीरों में जिस नैनो को आप देख रहे हैं वो इस एंट्री लेवल हैचबैक का मेनस्ट्रीम मॉडल नहीं है जो मार्केट में उपलब्ध था। बता दें कि टाटा नैनो में 38 पीएस की पावर जनरेट करने वाला 0.6 लीटर 2 सिलेंडर पेट्रोल इंजन दिया गया था। तस्वीरों में नजर आ रही नैनो इलेक्ट्रा ईवी द्वारा तैयार की गई टाटा नैनो का इलेक्ट्रिक मॉडिफिकेशन लग रहा है। यहां तक कि रतन टाटा के पास कस्टम बिल्ट इलेक्ट्रा ईवी नैनो इलेक्ट्रिक कार है।
इलेक्ट्रा ईवी नैनो केवल फ्लीट ऑपरेटर्स के लिए ही उपलब्ध है। भले ही आप इसे खरीद नहीं सकते हो, मगर आप बेंगलुरू में इसकी सवारी करने का आनंद उठा सकते हैं जहां सैनिक पॉड नाम की संस्था कई नैनो ईवी को टैक्सी कैब के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। नैनो के इस इलेक्ट्रिक वर्जन में 48 वोल्ट इलेक्ट्रिक मोटर दी गई है जो टिगॉर ईवी सेडान के फर्स्ट जनरेशन मॉडल से ली गई है। पुणे बेस्ड इलेक्ट्रा ईवी टाटा के इलेक्ट्रिक व्हीकल डिविजन टाटा मोटर्स इलेक्ट्रिक मोबिलिटी समेत कई बिजनेस हाउसेज को इलेक्ट्रिक पावरट्रेन डेवलपमेंट और मैन्युफैक्चरिंग सॉल्यूशंस दे रही है।
रतन टाटा ने नैनो क्यों की थी तैयार?
भारत में आज भी डेली कम्यूटिंग और परिवार की जरूरत के हिसाब से प्राइवेट व्हीकल के तौर पर लोग केवल 2 व्हीलर ही अफोर्ड कर सकते हैं, नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे 2019 -2021 के अनुसार देश में केवल 7.5 प्रतिशत लोगों के पास ही कार है जबकि 49.7 प्रतिशत लोगों के पास 2 व्हीलर है।
रतन टाटा का मानना था कि देश में खराब मौसम में 2 व्हीलर्स इस्तेमाल करने वाले लोगों को बचाव की काफी जरूरत है जो कि एक 4 व्हीलर ही कर सकता है। इस तरह से पूर्व टाटा चेयरमैन को नैनो कार बनाने का आइडिया आया।
भारत में क्यो फेल हुई टाटा नैनो?
नए सेगमेंट के लिए इंडियन ऑटोमोटिव मार्केट हमेशा से ही अनिश्चितताओं से भरा रहा है, भले ही फिर वो टॉप कार मैन्युुफैक्चरर द्वारा तैयार की गई कार ही क्यों ना हो। एंट्री लेवल सेगमेंट में हमेशा से गला काट प्रतियोगिता रही है जहां दशकों से मारुति 800 और ऑल्टो का ही दबदबा रहा है। ऐसे में नैनो को यहां एक अलग एप्रोच के साथ उतारा गया।
मगर टाटा नैनो मार्केट में अपनी वो छाप नहीं छोड़ पाई जितनी इससे उम्मीद थी। मारुति को अपनी गहन रिसर्च के बाद काफी सफलता मिली और इसके प्रोडक्ट्स के आगे नैनो बिल्कुल नया प्रोडक्ट था। ऐसे में टाटा को नैनो के बेस मॉडल की कीमत को 1 लाख रुपये तक लाने के लिए काफी ज्यादा कॉस्ट कटिंग करनी पड़ी। लॉन्च के समय नैनो में ओपनिंग रियर हैच, एक्सटर्नल फ्यूल फिलर डोर और पैसेंजर साइड रियरव्यू मिरर जैसे बेसिक फीचर्स तक नहीं दिए गए थे। इसमें केवल एक विंडस्क्रीन वाइपर और केवल तीन नट लगे 12 इंच के छोटे से व्हील्स ही दिए गए थे। इसके बेस वेरिएंट में एयरबैग, पावर विंडो और एसी तक नहीं दिया गया था।
एक नई कार लेने वालों के लिए ये चीज बड़ी बात समझी जाती है, मगर बाद में लोगों को फीचर्स की ऐसी कमियों का अहसास होता है और वो यही सोचते हैं कि थोड़े ज्यादा पैसे खर्च इससे बेहतर प्रोडक्ट लिया जा सकता था।
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इसके अलावा भारत में सेकंड हैंड कारें 2 व्हीलर्स का एक बेहतर विकल्प भी बन गए हैं। हालांकि 2 व्हीलर के मुकाबले बेसिक से बेसिक सेकंड हैंड कार की रनिंग कॉस्ट ज्यादा होने से लोग इन्हें खरीदने से कतराते हैं। इन सब बातों को समझने के बाद नैनो को मार्केट में उतारा गया, मगर बाइक और स्कूटर की फ्यूल इकोनॉमी और सर्विस कॉस्ट के आगे नैनो कहीं टिक नहीं पा रही थी और आखिरकार ये इनका विकल्प नहीं बन पाई।
फिर भी, टाटा नैनो एक नया प्रोडक्ट था और कुछ साल पहले जब लोग मारुति 800 जैसी एंट्री लेवल कारों का विकल्प ढूंढ रहे थे तब उसे मार्केट में लॉन्च कर दिया जाता तो शायद ये हिट साबित हो सकती थी। जिस समय नैनो लॉन्च हुई उस समय तो लोग मारुति की हैचबैक कारों से ऊपर खुद को अपग्रेड करने की सोचने लगे थे। ऐसे में जल्द मारुति ऑल्टो को कंपनी की ही स्विफ्ट हैचबैक से कड़ा चैलेंज मिलने लगा और स्विफ्ट सेल्स चार्ट में टॉप पर आने लगी और इस दौरान नैनो कहीं खो गई।
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Most unjustified view point on Nano.. The main cause of marketing failure of nano was Indian mentality due to tagging of cheapest or Lakhtia car during promotion of nano.
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Moreover, during launch of automatic nano in 2015, there was severe promotion failure on the part of TATA Motors itself. Proper marketing needs proper promotion, which lacked for automatic nano.