भारत की सड़कें क्यों हैं असुरक्षित, फोर्ड कार्टेसी सर्वे में हुआ इसका खुलासा
प्रकाशित: फरवरी 17, 2021 01:41 pm । स्तुति
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- कार्टेसी सर्वे के तीसरे एडिशन ने भारतीय रोड यूज़र्स ने अज्ञानता और सावधानी की कमी को दोहराया।
- यह सर्वे छह शहरों दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद में आयोजित किया गया।
- यातायात नियम जागरूकता में केवल 6 प्रतिशत यूजर ने आधे से ज्यादा अंक हासिल किए।
- 63 प्रतिशत यूजर ने बच्चों को आगे की सीट पर बैठने की अनुमति देकर बाल सुरक्षा के प्रति उपेक्षा दिखाई।
- 58 प्रतिशत लोगों ने गाड़ी चलाते समय फोन पर बात करना स्वीकार किया।
फोर्ड इंडिया ने कार्टेसी सर्वे के तीसरे एडिशन को आयोजित करके सड़क सुरक्षा में सुधार लाने और देश में जागरूकता फैलाने के प्रयासों को जारी रखा है। इस सर्वे में छह शहरों, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद के 1,500 से अधिक लोगों के इंटरव्यू के जवाब लिए गए। हमेशा की तरह इस बार भी सड़क सुरक्षा के तीन व्यापक पहलुओं से जुड़े सवाल लोगों से पूछे गए थे जिनमें यातायात नियमों का अनुपालन, सड़क पर सतर्क रहना और सड़क के अन्य अन्य लोगों के लिए के लिए दया भाव दिखाना। तो चलिए जानते हैं कि क्या रहे इस सर्वे के नतीजे:-
अनुपालन - जागरूकता की कमी और ड्राइविंग करते समय स्मार्टफोन का उपयोग
इस सर्वे में ट्रैफिक नियमों से जुड़े 31 सवाल पूछे गए थे जिनमें से केवल 6 प्रतिशत यूजर को 50 परसेंट से अधिक अंक मिल सके। दस में से केवल एक ने यातायात नियमों और संभावित सुरक्षा जोखिमों के बारे में ज्ञान की कमी के बीच संबंध को स्वीकार किया। वहीं, दिल्ली ने औसतन विभिन्न सुरक्षा नियमों के अनुपालन के सवालों पर सबसे खराब स्कोर हासिल किया।
यूजर के लिए विचलित ड्राइविंग सबसे आम मुद्दे के रूप में उभरा, जबकि 58 प्रतिशत यूजर का मानना है कि ड्राइविंग करते समय फोन पर बात करना ड्राइविंग को प्रभावित करता है। इसके अलावा 97 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि मोबाइल फोन का उपयोग सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारणों में से एक है।
सावधानी - 63 प्रतिशत लोगों का मनना है कि बच्चों को आगे की सीट पर बैठाना सही है
रोड सेफ्टी का मतलब सिर्फ ट्रैफिक नियमों का पालन करने से ही नहीं है। इसमें सावधानी बरतने की भी आवश्यकता होती है जिससे संभावित जोखिमों से बचा जा सके और दूसरों को किसी तरह का कोई नुकसान भी नहीं पहुंचे। लेकिन, अफ़सोस की बात है कि अधिकांश लोग अपने कम उम्र के बच्चों को आगे की सीट पर बैठाने की अनुमति देते हैं और बैक सीट पर बैठाने की बजाए फ्रंट सीट पर बैठाकर उन्हें खतरे में डालते हैं। इसके अलावा आधे से ज्यादा लोगों ने नींद के दौरान ड्राइविंग करना भी स्वीकार किया है। ड्राइविंग करते समय सावधानी बरतने के अधिकांश मामलों में छह में से चार मेट्रो सिटी ने औसतन खराब प्रदर्शन किया है। वहीं, 81 प्रतिशत यूजर का मानना है कि 'आक्रामक ड्राइविंग' सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारणों में से एक है।
सहानुभूति : अधिकांश लोग मानते हैं कि वे आपातकालीन वाहनों को हमेशा रास्ता नहीं देते हैं
सड़क सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू जो होता है वह है सड़क पर दूसरों के लिए दया भावना रखना। इसमें आपातकालीन वाहनों को रास्ता देना, जरूरतमंद लोगों को सहायता प्रदान करना, दूसरों के साथ धैर्य रखना और अपने आसपास हो रही चीज़ों के प्रति सचेत रहना शामिल है। लेकिन, इस सर्वे से हमें पता चलता है कि अधिकतर भारतीय ड्राइवरों में दया भाव की कमी है। वहीं, 53 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि वे आपातकालीन वाहनों जैसे एम्बुलेंस और फायर ट्रक को रास्ता नहीं देते हैं। जबकि, 57 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें सड़क पर कूड़ा डालने में कोई आपत्ति नहीं है। दिल्ली के लोगों ने ट्रैफ़िक के दौरान सहानुभूति का आकलन करने वाले अधिकांश सवालों पर लगातार सबसे कम अंक प्राप्त किए।
कार्टेसी सर्वे के तीसरे एडिशन के जरिये ड्राइवर व यात्रियों के व्यवहार के बारे में अच्छे से पता चल सका। नतीजे आने के बाद यूजर्स को चार व्यक्तित्व टाइप ओब्लिवियस, एश्योर्ड, प्रीटेंशियस और आइडियलिस्ट में बांटा गया है।
इसमें आइडियलिस्ट वो लोग हैं जो कानून का पालन करते हैं, जागरूक हैं और नियमों से तब तक विचलित नहीं होते हैं जब तक कि कोई आपात स्थिति न हो। वहीं, ओब्लिवियस यूज़र वो हैं जो ड्राइविंग के दौरान विचलित होते हैं और जिन्हें यातायात नियमों और गाइडलाइंस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।
इस सर्वे के अनुसार, भारत को सड़क पर कई सारे आइडियलिस्ट की आवश्यकता है। जिन शहरों में 'ओब्लिवियस' रोड यूज़र्स का बड़ा अनुपात है उनका कार्टेसी स्कोर सबसे कम है। करीब 40 परसेंट ड्राइवर इस श्रेणी में आते हैं, जबकि आइडियलिस्ट केवल 8 प्रतिशत ही हैं। सिटी वाइज़ स्कोर में कोलकाता ने आइडियलिस्ट कैटेगरी में आने वाले 22 प्रतिशत यूजर्स के साथ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। जबकि, दिल्ली का दूसरा सबसे कम कार्टेसी स्कोर रहा है, वहीं बेंगलुरू में 62 प्रतिशत यूजर्स ओब्लाइवियस कैटेगरी के अंतर्गत आए।
नोट : प्रत्येक शहर को पांच कैटेगरी (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और सेंट्रल) में बांटा गया था और निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के लिए सभी यूजर्स का हर ज़ोन से इंटरव्यू किया गया था। बता दें कि यूजर्स में से 78 प्रतिशत पुरुष थे और 22 प्रतिशत महिलाएं थीं।
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