अब केवल यादों में रतन टाटा: भारत के व्हीकल मार्केट में ऐसा रहा था उनका प्रभाव, जानिए उनसे जुड़े ये दिलचस्प किस्से
संशोधित: अक्टूबर 11, 2024 02:27 pm | भानु
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उद्योगपति,आइकन और पद्म विभुषण से सम्मानित श्री रतन नवल टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया है। वो उम्र संबंधी बीमारियों के कारण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थे जहां उन्होनें आखिरी सांस ली।
साल 1991 में टाटा समूह के चेयरमैन श्री रतन टाटा ने इस कंपनी को एक बहुत बड़ी कंपनी के रूप में तब्दील करने का काम किया था जहां उन्होनें स्वास्थ,शिक्षा और खासतौर से ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में काफी योगदान दिया। रतन टाटा ने ही टाटा मोटर्स की नींव रखी थी और इंडियन ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में अपना सराहनीय योगदान दिया था।
इस दुख की घड़ी में टाटा संस के चेयरमैन एन.चंद्रशेखरन ने समूह की ओर दुख प्रकट करते हुए कहा कि ‘हम अत्यंत क्षति की भावना के साथ श्री रतन नवल टाटा को विदाई दे रहे हैं, जो वास्तव में एक असाधारण व्यक्ति थे, जिनके अतुलनीय योगदान ने न केवल टाटा समूह को बल्कि हमारे राष्ट्र के ढांचे को भी आकार दिया है। टाटा समूह के लिए, श्री टाटा एक चेयरमैन से ज्यादा एक महान प्रशासक थे। मेरे लिए वह एक गुरु, मार्गदर्शक और मित्र थे। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य सेवा तक, उनकी पहल ने गहरी छाप छोड़ी है जिससे आने वाली पीढ़ियों को लाभ होगा। वे काफी विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे। पूरे टाटा परिवार की ओर से, मैं उनके प्रियजनों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं। उनकी विरासत हमें प्रेरित करती रहेगी क्योंकि हम उन सिद्धांतों को कायम रखने का प्रयास करते हैं जिनका उन्होंने बहुत उत्साह से समर्थन किया।''
सबसे महान उद्योगपतियों, परोपकारियों और व्यापार जगत के प्रतीकों में से एक को श्रद्धांजलि देते हुए, आइए देखें कि रतन टाटा ऑटोमोटिव क्षेत्र में एक अग्रणी व्यक्ति कैसे बने और इस दौरान उन्होंने क्या प्रमुख योगदान दिए।
उनके लिए रास्ता उतना आसान नहीं था
रतन टाटा एक दूरदर्शी व्यक्ति थे जिनकी महत्वाकांक्षा केवल ऑटोमोबाइल बिजनेस बनाने तक ही सीमित नहीं थीं। उनका लक्ष्य एक ऐसा उद्योग स्थापित करना था जो कई क्षेत्रों और उद्देश्यों को पूरा करे। हालांकि, सबसे महान उद्योगपतियों में से एक बनने की उनकी यात्रा कोई आसान नहीं थी। हालांकि वे प्रतिष्ठित टाटा परिवार से थे, जो पहले ही एक विशाल समूह के रूप में विकसित हो चुका था, रतन टाटा ने अपना करियर टेल्को (टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी लिमिटेड) से शुरू किया, जिसे अब टाटा मोटर्स के नाम से जाना जाता है।
टेल्को में छह महीने बिताने के बाद, रतन टाटा 1963 में टिस्को (टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी) में शामिल हो गए, जिसे अब टाटा स्टील के नाम से जाना जाता है। एक व्यक्ति जो रोल्स रॉयस में स्कूल जाता था, वह जमशेदपुर में टिस्को में फ्लोर वर्कर के रूप में काम कर रहा था। यह एक व्यक्ति के रूप में रतन टाटा की विनम्रता और उदारता को दर्शाता है। 1991 में, रतन नवल टाटा ने समूह के अध्यक्ष के रूप में टाटा समूह की कमान संभाली। हालांकि, 1993 में उनके चाचा जेआरडी टाटा के निधन के बाद उन्हें काफी संघर्षों से गुजरना पड़ा। हालांकि, रतन टाटा ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने टाटा मोटर्स को आज इस मुकाम पर पहुंचाया कि आज ये कंपनी कमर्शियल व्हीकल बिजनेस से लेकर भारत में इलेक्ट्रिक कार बाजार में सबसे आगे है।
ट्रक बनाने से लेकर इलेक्ट्रिक कारें बनाने तक का तय किया सफर
टाटा मोटर्स की स्थापना 1945 में टेल्को के रूप में हुई थी, जो मूल रूप से लोकोमोटिव मैन्यूफैक्चरिंग पर केंद्रित थी। बाद में, टाटा ने डेमलर-बेंज के साथ एक समझौता किया, जिसके परिणामस्वरूप टाटा-मर्सिडीज-बेंज पार्टनरशिप के तहत पहला ट्रक लॉन्च हुआ। इस पार्टनरशिप ने न केवल टाटा को व्हीकल मैन्यूफैक्चरिंग में सक्षम बनाया बल्कि मर्सिडीज-बेंज को भारत में अपनी उपस्थिति स्थापित करने में भी मदद की। परिणामस्वरूप, मर्सिडीज-बेंज ने 1995 में अपने ब्रांड के तहत भारत में अपनी डब्ल्यू124 ई-क्लास सेडान लॉन्च की। दिलचस्प बात यह है कि पहली मर्सिडीज का मैन्यूफैक्चरिंग पुणे में टाटा मोटर्स के प्लांट में की गई थी। मर्सिडीज-बेंज से पहले, टाटा ने 1991 में अपना पहला पैसेंजर व्हीकल, टाटा सिएरा पेश किया था। सिएरा अपने डिजाइन और फीचर्स के कारण काफी पॉपुलर कार रही थी।
90 के दशक में, यह संभवतः पहली मेड इन इंडिया कारों में से एक थी जिसमें पावर विंडो और पावर स्टीयरिंग जैसे फीचर्स दिए गए थे। फिर 1992 में टाटा एस्टेट आई जो पहली मेड इन इंडिया व्हीकल था जिसे स्टेशन वैगन बॉडीस्टाइल में पेश किया गया ।
सिएरा और एस्टेट के बाद टाटा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उसका पैसेंजर व्हीकल बिजनेस फलता-फूलता रहा। 1994 में सूमो को लॉन्च किया गया, उसके बाद 1998 में सफारी को लॉन्च किया गया। सफारी को ऐसे समय में पेश किया गया था जब इसके जैसी कोई एसयूवी मौजूद नहीं थी; सरल शब्दों में कहें तो इसने भारत में स्टाइलिश एसयूवी सेगमेंट की शुरुआत की।
आज टाटा के पोर्टफोलियो में 5 इलेक्ट्रिक कारें हैं जिनमें टाटा टियागो ईवी,टाटा टिगॉर ईवी,टाटा पंच ईवी, टाटा नेक्सन ईवी और टाटा कर्व ईवी शामिल है।
इंडिका और नैनो: ऑटो इंडस्ट्री में क्रांति लाने वाली कारें
1990 के दशक के दौरान, मारुति 800 जैसी कारों ने पहले ही भारतीय कार बाजार को बदल कर रख दिया था, लेकिन डीजल इंजन वाली छोटी कारें अभी भी उपलब्ध नहीं थीं। टाटा डीजल इंजन वाली स्वदेशी छोटी कार: टाटा इंडिका पेश करने वाली पहली इंडियन व्हीकल मैन्यूफैक्चरर बनी।
इसकी ‘More Car Per Car, की टैगलाइन के साथ मार्केटिंग कह गई जिसका साइड मारुति जैन जितना था मगर इसके अंदर एंबेस्डर जितना स्पेस मिलने का वादा किया गया। टाटा इंडिका को कई अपडेट प्राप्त हुए और 2015 तक ये बाजार में बनी रही जिसके बाद इसे इंडिका विस्टा नाम देकर अपडेट किया गया।
टाटा नैनो
एक बार जब रतन टाटा ने एक परिवार में पति, पत्नी और उनके बच्चों को बारिश के दौरान दोपहिया वाहन पर सवार होते देखा जो उस समय बाइक से गिर गए, जिससे रतन टाटा को एहसास हुआ कि मोटरसाइकिल परिवारों के लिए परिवहन का एक सुरक्षित साधन नहीं है। वह भारतीय परिवारों के लिए सड़क यात्रा को सुरक्षित बनाना चाहते थे, लेकिन बड़ा सवाल यह था कि कैसे? इस समस्या के समाधान के लिए 1 लाख रुपये की कीमत वाली एक छोटी कार बनाने की सोच पैदा हुई । यह टाटा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती थी, लेकिन टाटा इसमें सफल रही, और 2008 में भारत सबसे सस्ती कार के तौर पर टाटा नैनो को लॉन्च किया गया।
हालाँकि, नैनो कंपनी की योजना के अनुसार नहीं चल पाई और रतन टाटा ने स्वयं स्वीकार किया कि नैनो को सबसे सस्ती कार के रूप में मार्केटिंग करना एक बड़ी गलती थी। बाद में, नैनो की कीमत 2 लाख रुपये से अधिक हो गईं, और इसे 2020 में बंद कर दिया गया।
जब रतन टाटा ने बिल फोर्ड से की मुलाकात
टाटा का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों के साथ साझेदारी करके अपने ऑटोमोबाइल व्यवसाय का विस्तार करना था, जिनमें से एक फोर्ड भी थी। कई रिपोर्टों के अनुसार, रतन टाटा और उनकी टीम ने 1999 में अपने ऑटोमोबाइल बिजनेस को शोकेस करने के लिए फोर्ड चेयरपर्सन बिल फोर्ड से मुलाकात की। हालांकि, ये बैठक अच्छी नहीं रही और फोर्ड के प्रतिनिधियों ने कारों के निर्माण में टाटा की विशेषज्ञता पर सवाल उठाया। उन्होंने यहां तक पूछा कि अगर टाटा को यह नहीं पता कि यह कैसे करना है तो उन्होंने ऑटोमोबाइल में एंट्री ली ही क्यों।
जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण
हालांकि फोर्ड के साथ टाटा की बैठक अच्छी नहीं रही, लेकिन बाद में स्थिति बदल गई जब टाटा ने 2008 में 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर में फोर्ड से जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण कर लिया। जबकि रतन टाटा ने कभी भी स्पष्ट रूप से नहीं कहा कि अधिग्रहण बदले की कार्रवाई थी, 1999 में फोर्ड ने टाटा के साथ जो किया था, उसे देखते हुए इसे अक्सर ऐसा ही माना जाता है।
इस बारे में रतन टाटा ने कहा था कि “यह टाटा मोटर्स में हम सभी के लिए एक महत्वपूर्ण समय है। जगुआर और लैंड रोवर दुनिया भर में विकास की संभावनाओं वाले दो प्रतिष्ठित ब्रिटिश ब्रांड हैं। हम जगुआर लैंड रोवर टीम को उनकी प्रतिस्पर्धी क्षमता का एहसास कराने के लिए अपना पूरा समर्थन देने के लिए उत्सुक हैं। जगुआर लैंड रोवर अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखेगा और पहले की तरह अपनी संबंधित व्यावसायिक योजनाओं को आगे बढ़ाता रहेगा। हम दोनों ब्रांडों के प्रदर्शन में महत्वपूर्ण सुधार को पहचानते हैं और आशा करते हैं कि आने वाले वर्षों में यह प्रवृत्ति जारी रहेगी। हमारा इरादा दो ब्रांडों की सफलता और प्रमुखता के निर्माण में जगुआर लैंड रोवर टीम का समर्थन करने के लिए मिलकर काम करना है।"
जहां फोर्ड जेएलआर से मुनाफा कमाने में सक्षम नहीं थी, वहीं टाटा मोटर्स ने जगुआर लैंड रोवर को न केवल जीवित रखा बल्कि इसे एक लाभदायक ब्रांड भी बनाया।
कारदेखो की संवेदनाएं हमेशा टाटा परिवार के साथ
रतन टाटा और उनकी दूरदर्शी टेक्नोलॉजी ने न केवल भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की मदद की, बल्कि भारतीय बाजार में अपने पदचिह्न स्थापित करने में मर्सिडीज-बेंज और जगुआर लैंड रोवर जैसे कई अन्य ब्रांडों का भी समर्थन किया। उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जाएगा और उनकी विरासत हमेशा कायम रहेगी।
कारदेखो में हम उनके निधन की खबर सुनकर दुखी हैं और इस कठिन समय में शोक संतप्त परिवार और उनके प्रियजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं।