देश में 2030 के बाद पेट्रोल-डीजल कारों की जगह ले सकती हैं इलेक्ट्रिक कारें
भारत सरकार का थिंक टैंक माने जाने वाले नीति आयोग ने इलेक्ट्रिक व्हीकल कारों के भविष्य को लेकर एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि वर्ष 2030 के बाद देश में केवल इलेक्ट्रिक वाहन ही बेचे जा सकेंगे। यह प्रस्ताव मौजूदा सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन जयराम गडकरी द्वारा साल 2017 में रखा गया था।
अब, ऑटोमोटिव उद्योग द्वारा पैरवी के बाद कहा जा रहा है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल के रोडमैप के बारे में निर्णय ऑटो उद्योग के साथ परामर्श के बाद लिया जाएगा।
देश की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का 60 प्रतिशत मार्केट शेयर रखने वाली मारुति सुजुकी और हुंडई अपने पोर्टफोलियो में जल्द ही इलेक्ट्रिक वाहन शामिल करने जा रही है। हुंडई अपनी पहली इलेक्ट्रिक एसयूवी कोना को भारतीय बाजार में उतारने जा रही है। भारत में इसे 9 जुलाई 2019 को लॉन्च किया जाएगा। पहली इलेक्ट्रिक एसयूवी कार होने के साथ यह देश की पहली सबसे लंबी रेंज वाली कार भी होगी। वहीं, मारुति साल 2020 तक अपनी इलेक्ट्रिक हैचबैक कार बाज़ार में पेश करेगी। ब्रिटिश कार निर्माता एमजी मोटर्स इस महीने के अंत तक अपनी पहली कार हेक्टर लॉन्च करेगी। इसके बाद कंपनी की इलेक्ट्रिक कार सेगमेंट में प्रवेश करने की योजना है। कंपनी दिसंबर 2019 तक अपनी लंबी रेंज वाली ईजेडएस कार को लॉन्च करेगी।
टाटा और महिंद्रा जैसी कंपनियां भी भारतीय बाज़ार के लिए इलेक्ट्रिक कारें तैयार कर रही हैं। वहीं, हुंडई और किया मोटर्स की भी यहां भविष्य में इलेक्ट्रिक कारें मैन्यूफैक्चर करने की योजना है। ऐसे ही कुछ मास मार्केट कार निर्माता कंपनियां भी इलेक्ट्रिक व्हीकल पेश करने की इच्छा जता चुकी हैं। लेकिन केवल तब, जब सरकार के पास इलेक्ट्रिक कारों और उन्हें तैयार करने के लिए बुनियादी ढांचे का एक मजबूत रोडमैप हो।
सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) भारत के सभी प्रमुख वाहन और वाहन इंजन निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था है। अब यह देखने वाली बात होगी कि ये संस्था भारत में 2030 के बाद केवल इलेक्ट्रिक कारों को बेचे जाने के प्रस्ताव को हरी झंडी देती है कि नहीं। साथ ही अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि इतनी कम अवधि में सपोर्टिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर कैसे विकसित होगा।