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होंडा ड्राइव टू डिस्कवर 12ः एलिवेट, अमेज और सिटी हाइब्रिड के साथ कैसा रहा हमारा सिक्किम की खूबसूरत वादियों का सफर, जानिए यहां

प्रकाशित: दिसंबर 27, 2023 04:54 pm । sonnyhonda elevate

एक बार फिर ये साल का वो समय था जब हम होंडा के साथ भारत के कुछ खूबसूरत लोकेशन पर गए। ‘होंडा ड्राइव 2 डिस्कवर’ के इस 12वे एडिशन में हमनें भारत के पूर्वी राज्यों पश्चिम बंगाल और सिक्किम के कुछ इलाकों का टूर किया। इससे पहले इस इवेंट का हिस्सा रह चुके मेरे कुछ सहयोगियों से मैंने होंडा के इस एनुअल इवेंट की काफी तारीफें सुनी थी जिसके बाद मैं इसका अनुभव करने के लिए उत्सुक था।

कुछ दिनों तक हमारे साथ होंडा की काफी सारी फ्लीट रहने वाली थी। कैसा रहा हमारा अनुभव ये आप जानेंगे आगे:

पहला दिन: सिलिगुड़ी से गंगटोक

हमारा ये रोमांचक सफर पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी से शुरू हुआ। किस्मत से इस यात्रा के पहले चरण के लिए हमें होंडा एलिवेट का मैनुअल वेरिएंट दिया गया।

इस दौरान मैंने अनुभव किया कि होंडा की इस एसयूवी के बड़े से बूट में हमारा सामान रखने के लिए काफी जगह मौजूद थी जिसके अंदर हमनें 1 मिडियम साइज का सूटकेस, 1 फुल साइज का सूटकेस और कुछ बैकपैक्स रखे। ये 100 किलोमीटर का सफर था जहां कुछ दूर रास्ता अच्छा था तो कुछ खराब था। इस परिस्थिति में इस एसयूवी ने आसानी से इस चुनौती का सामना कर लिया और राइड काफी रिफाइंड रही।

मेली नाम के एक शहर में हमें लंबे ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ा जहां सड़कें भी बारिश के कारण बह चुकी थी और ये इतनी ही चौड़ी थी कि एक बार में एक ही व्हीकल यहां से निकल सकता है। ऐसे में कुछ किलोमीटर पार करने में हमें एक से ज्यादा घंटे का समय लग गया, मगर एलिवेट के शानदार इंटीरियर ने हमें बिल्कुल भी परेशान नहीं होने दिया।

सिक्किम में दाखिल होते ही सड़कें घुमावदार होने लगी और एलिवेट ने इन्हें काफी आसानी से हैंडल कर लिया और ये शार्प टर्न पर काफी स्टेबल भी रही। इसमें दिए गए 1.5 लीटर नैचुरली एस्पिरेटेड पेट्रोल इंजन से हमें लोअर आरपीएम पर अच्छी खासी टॉर्क मिली और हमनें आराम से खड़ी चढ़ाई भी चढ़ ली।

ड्राइव टू डिस्कवर का हमारा पहला स्टॉप सिक्किम की राजधानी गंगटोक था, जहां हम रात करीब 8 बजे पहुंचे।

दूसरा दिन: गंगटोक से नाथुला पास

अगले दिन हमें उत्तर की तरफ नाथुला पास पहुंचना था जो कि भारत चीन सीमा के करीब है।

दूसरे दिन हमें एलिवेट का ऑटोमैटिक वेरिएंट ड्राइव के लिए दिया गया। हमें बताया गया कि यहां का पारा 0 डिग्री चल रहा है जो कि हमारी इस यात्रा का सबसे ठंडा हिस्सा रहा।

सीमा सड़क संगठन का जितना शुक्रिया अदा किया जाए उतना कम है, क्योंकि रास्ता काफी अच्छा था जिससे कार ड्राइव करने में काफी आनंद आ रहा था। एलिवेट का ऑटोमैटिक वेरिएंट जल्दी से हाई रेव्स पर नहीं पहुंचता है, मगर ड्राइव सलेक्टर को एस पर करने और पैडल शिफ्टर के इस्तेमाल से आप 5000 आरपीएम को पार कर सकते हैं। हमें खड़ी चढ़ाई चढ़ने के लिए इस चीज की काफी जरूरत भी थी। यहां सनरूफ का फीचर काफी काम आया जिससे केबिन में एक खुलेपन का अहसास हो रहा था और पहाड़ों की शुद्ध हवा भी केबिन में दाखिल हो पा रही थी। उस दिन धूप खिली हुई थी तो हमनें सनरूफ को खुला रखा जबकि तापमान 3 डिग्री तक गिर गया था।

रास्ते में हमें काफी झीले देखने को मिली जिनमें से सबसे बड़ी झील सोंगमो थी। होंडा के हमारे इस कारवां को नाथुला पास से कुछ किलोमीटर पहले ही रोक दिया गया, जहां हमनें हमारी गाड़ियां एक मिलिट्री हैलिपैड पर पार्क कर दी। हम चीन के इलाके से कुछ ही दूरी पर थे जहां से हमें चीन का झंडा और सेना की पोस्ट दिखी।

धूप खिली होने के बावजूद पिछली रात हुई बर्फबारी के अंश सड़क के किनारे दिखाई दे रहे थे। होंडा ड्राइव टू डिस्कवर इवेंट में ऐसा पहली बार हुआ जब बर्फ देखने को मिली।

वापस लौटने का सफर तो और ज्यादा रोमांचक साबित हुआ जहां अच्छी सड़कों पर एलिवेट की हैंडलिंग को और ज्यादा परखने का मौका मिला। शहर में दाखिल होने के बाद हमें भारी ट्रैफिक का सामना करना पड़ा जहां 3 पैडल सेटअप के कारण और ज्यादा तनावपूर्ण एक्सपीरियंस रहा। उस दिन हमनें करीब 140 किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता तय किया था।

रात में रुकने के बाद हमें कुछ स्थानीय संगीतकारों के साथ वक्त बिताने का मौका मिला और ड्राइव टू डिस्कवर के पिछले एडिशन के बारे में कुछ रोचक बातें सुनने को मिली।

तीसरा दिन: गंगटोक से पेलिंग

सेलिब्रेशन के बाद हमें पेलिंग के लिए निकलना था। इस बार हमें होंडा अमेज का मैनुअल वेरिएंट ड्राइव करना था जो कि इसका टॉप मॉडल था। छोटा बूट होने के बावजूद हम हमारे सूटकेस इसमें रख पाए मगर बैकपैक्स को हमनें रियर सीट पर रखा।

सीधा रूट 100 किलोमीटर का था मगर कुछ जगह रास्ता बंद होने से हमें दूसरे रास्तों पर जाना पड़ा। पेलिंग पहुंचने से पहले हम सिक्किम पश्चिम बंगाल बॉर्डर पर पहुंचे। गंगटोक से नाथुला पास वाले रास्ते के मुकाबले यहां कि सड़कें ज्यादा खराब थी और होंडा एलिवेट के मुकाबले होंडा अमेज में हमारा सफर ज्यादा कंफर्टेबल नहीं रहा।

मगर इस बात को गलत ना लें क्योंकि अमेज वैसे तो काफी कंफर्टेबल सेडान है, मगर हम इससे बड़ी और ज्यादा आलीशान एलिवेट को मिस कर रहे थे। वहीं प्राकृतिक सुंदरता को निहारने के लिए हमें सनरूफ की भी कमी महसूस हो रही थी।

हमारी ये ड्राइव काफी स्लो थी और शाम ढलने से पहले हमें काफी रास्ता तय करना था जहां इस सीजन में रात 5 बजे ही हो जाती है। सफर के सपाट रास्तों पर मैंनें इस छोटी सेडान को कुछ ज्यादा ही खींच दिया जिसका नतीजा काफी चौंका देने वाला रहा।

इसका इंजन 4000 आरपीएम के बाद भी अच्छी पावर डिलीवर कर रहा था और इसका 5 स्पीड मैनुअल गियरबॉक्स भी अच्छा महसूस हुआ। एक बार आप इसके स्टीयरिंग व्हील के आदी हो जाएं तो आपको इसे पहाड़ों में ड्राइव करने में काफी मजा आएगा। थोड़ा तेज ड्राइव करने के बाद फिर मैंने इसे आराम से ड्राइव किया। ढलान वाले रास्ते शुरू होने से पहले मेरा साथी पीछे की सीट पर जा बैठा। ऐसे में मैंने रियर पैसेंजर का कंफर्ट बढ़ाने के लिए अपनी ड्राइविंग को एडजस्ट किया और इस दौरान अमेज ढलान और चढ़ाई पर काफी स्मूद साबित हुई।

देर शाम हमारा कारवा एक रिजॉर्ट पर पहुंचा और हमें आगे युकसोम तक जाने का प्लान कैंसिल करना पड़ा। यहां पत्रकारों और होंडा के प्रतिनिधियों के लिए बॉनफायर का इंतजाम किया गया और उस रविवार की रात हमनें काफी मजे भी किए।

चौथा दिन: पेलिंग से दार्जिलिंग और वहां से कलिमपोंग

मुझे प्लान के मुताबिक पेलिंग की स्कायवॉक देखने को लेकर उत्सुकता थी जो कि हमारे होटल से कुछ ही किलोमीटर दूर था। सुबह जल्दी उठने का फायदा ये हुआ कि मुझे मेरे रूम से ही कंचनजंगा माउंटेन रेंज नजर आई।

पेलिंग स्कायवॉक भारत का सबसे बड़ा ग्लास ब्रिज है जिसपर चला जा सकता है और रास्ते में ही ​हमें चेनरेज़िग नामक बौध धर्म के एक महान व्यक्ति की 42 मीटर ऊंची मूर्ति के दर्शन भी हुए। इस ग्लास ब्रिज की समुद्र तल से ऊंचाई 2200 मीटर है।

मंदिर में दर्शन करने के बाद हमें अपने अगले पड़ाव दार्जिलिंग पहुंचना था। हम वापस पश्चिम बंगाल पहुंचे मगर गूगल मैप्स ने हमें जो रूट बता रखा था वो काफी थका देने वाला था। यहां सड़कें काफी खराब रहने वाली थी और ये काफी संकरी भी थी, मगर ​एलिवेट से ​हम दार्जिलिंग में जिंज नाम के चाय बगान तक पहुंच गए जहां हमें लन्च करना था।

शाम तक हम कलिमपोंग पहुंच गए और दार्जिलिंग से निकलते समय रास्ते में हमें यहां की फेमस टॉय ट्रेन भी नजर आई। पहाड़ों से नीचे उतरते वक्त ढलान पर अब एलिवेट को अपनी डायनैमिक क्षमताओं का प्रदर्शन करना था। घुमावदार रास्तों पर स्पीड मेंटेन रखने और सैटल रहने के लिए एलिवेट की तारीफ करनी पड़ेगी। डिनर के लिए सही वक्त पर हम कलिमपोंग में हमारे आखिरी होटल तक पहुंच ही गए।

पांचवा दिन: कलिमपोंग से सिलिगुड़ी और फिर वहां से घर

होंडा ड्राइव टू डिस्कवर का ये आखिरी दिन था जहां पुणे के लिए हमारी फ्लाइट शाम को थी। कलिमपोंग से सिलिगुड़ी का हमारा ये सफर काफी छोटा था जिसमें हमें 65 किलोमीटर कवर करने थे।

हमारे इस रोमांचक टूर के आखिरी सफर के लिए हमें होंडा सिटी हाइब्रिड सेडान ड्राइव करने को दी गई जो कि मैं इससे पहले एक इवेंट में ड्राइव कर चुका था। कंपनी के लाइनअप की सबसे महंगी इस कार का बूट स्पेस भी काफी छोटा है और सिलिगुड़ी तक मैंने इसकी बैक सीट पर बैठकर सफर तय करने का फैसला किया और ये काफी कंफर्टेबल महसूस हुई।

इस ड्राइव में हमें पिछले चार दिनों के मुकाबले ज्यादा सुंदर नजारे देखने को नहीं मिले। पुणे की हमारी फ्लाइट पकड़ने से काफी समय पहले ही हम सिलिगुड़ी पहुंच गए जहां फिर हमनें दार्जिलिंग चाय और कुछ लोकल हैंडिक्राफ्ट्स खरीदने के लिए स्थानीय बाजार का रुख किया।

सारांश

होंडा ड्राइव टू डिस्कवर में मैं पहली बार शरीक हुआ था जो कि मेरे लिए एक यादगार पल रहेगा। ये इवेंट काफी रोमांचक रहा जहां मुझे होंडा की अलग अलग कारों को करीब से जानने का मौका मिला। लेकिन केवल कारों से परे, यह भारत के कुछ बेहद ही खूबसूरत स्थानों और रास्ते में अपने बारे में और अधिक जानने की यात्रा थी।

ये भी देखें: होंडा एलिवेट ऑन रोड प्राइस

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