संकट की घड़ी में देश की ऑटो इंडस्ट्री को नहीं मिली सरकारी मदद
प्रकाशित: मार्च 27, 2020 08:26 pm । भानु । मारुति ऑल्टो 2000-2012
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देश में बड़े पैमाने पर फैल रहे कोरोनावायरस के खतरे को देखते हुए भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1.7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है। यह कोष इस वायरस से लड़ने वाले स्वास्थ्य सेवा कर्मी जैसे अग्रिम पंक्ति के सैनिकों की सहायता करने के लिए है जो इस परीक्षा की घड़ी में डटकर सामना कर रहे हैं।
यह लॉकडाउन आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों जैसे कि किसानों, दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों का जीवन मुश्किल बना रहा है। ऐसे में इस वित्तिय मदद से जनजीवन को थोड़ी बहुत राहत मिलने की उम्मीद है। हालांकि, इस वित्तिय सहायता में मंदी की मार झेल रही ऑटो इंडस्ट्री को कोई मदद दिए जाने का ऐलान नहीं किया गया है।
सोसायटी ऑफ ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री सियाम के प्रेसिडेंट राजन वढेरा ने कहा है कि 'वित्त मंत्री द्वारा 1.7 लाख करोड़ रुपये की वित्तीय कार्य योजना की घोषणा हमारे चिकित्सा योद्धाओं, दैनिक वेतन भोगियों, किसानों, निर्माण श्रमिकों, स्वयं सहायता समूहों, महिलाओं, आदि का समर्थन करने के लिए की गई है। ऐसे में निश्चित रूप से सरकार पर हमारे समाज के कमजोर वर्ग के विश्वास को COVID 19 के कारण होने वाली तात्कालिक चिंताओं से निपटने में उनका समर्थन करेगा। हमें उम्मीद है कि सरकार भी जल्द ही ऑटोमोटिव उद्योग को समर्थन देने के उपायों की घोषणा करेगी।
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फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल्स डीलर्स एसोसिएशन (फाडा) ने भी बिना बिके BS4 वाहनों की संख्या को लाखों में बढ़ाने के लिए अधिकारियों के पास याचिका दायर की है। वॉक-इन सेल्स लगभग एक सप्ताह पहले 70 प्रतिशत तक गिर गई थी और लॉकडाउन के प्रभावी रूप से लागू होने के बाद लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाले स्टोर्स को ही खोले जाने की अनुमति दी गई है।
हालांकि, डीलरों और कार मैन्यूफैक्चरर्स के पास घाटे से निपटने के लिए आमतौर पर पर्याप्त फाइनेंस होता है मगर, डीलरशिप कर्मचारी और मैकेनिक को स्थगित वेतन चेक या यहां तक कि छंटनी के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
भारत सरकार ने घातक कोरोनावायरस को नियंत्रित करने के प्रयास में 1.3 बिलियन की आबादी के लिए दुनिया के सबसे बड़े लॉकडाउन का आदेश दिया है। उनके इस कदम से संपार्श्विक क्षति भी हुई है क्योंकि इसने कई लोगों के रोजगार स्रोतों पर कड़ा प्रहार किया है। सरकार से एक सुधारात्मक कदम की उम्मीद करना केवल स्वाभाविक है।
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