टाटा सफारी 5-स्टार सेफ्टी रेटिंग बिहाइंड द सीनः भारत की सड़कों पर सेफ कार उतारने के लिए टाटा कैसे करती है इंटरनल क्रैश टेस्ट, जानिए यहां

प्रकाशित: मार्च 05, 2024 04:36 pm । shreyashटाटा सफारी

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Tata Safari Internal Crash Test

भारतीय ग्राहक इन दिनों नई कार खरीदते वक्त क्रैश टेस्ट सेफ्टी रेटिंग को अहमियत देने लगे हैं। कार कंपनियां अपने व्हीकल को क्रैश टेस्ट एजेंसी को देने से पहले इंडस्ट्री रेगुलेशन के हिसाब से कुछ इंटरनल टेस्ट करती है। आज भारत में अगर हम 5-स्टार सेफ्टी रेटिंग वाली कार की बात करते हैं तो दिमाग में सबसे पहले टाटा मोटर्स का नाम आता है जिसकी टाटा सफारी एसयूवी को ग्लोबल एनकैप और भारत एनकैप दोनों क्रैश टेस्ट में 5-स्टार सेफ्टी रेटिंग मिली हुई है। टाटा ने हाल ही में हमें पुणे के पास पिंपरी मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में अपनी क्रैश टेस्ट फेसिलिटी में बुलाया, जहां हमनें सफारी एसयूवी का डेमो देखकर यह जाना कि कंपनी कैसे अपनी कारों को सेफ बनाती है।

क्रैश टेस्ट क्या है?

Tata Harrier facelift side pole impact Global NCAP

कार क्रैश टेस्ट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्हीकल की जानबूझकर टक्कर कराई जाती है और तेज स्पीड में टक्कर की स्थिति में गाड़ी में बैठे पैसेंजर की सुरक्षा का आंकलन किया जाता है। 1934 में जनरल मोटर्स ने पहली बार क्रैश टेस्ट शुरू किया था। आज दुनियाभर में कई एनकैप क्रैश टेस्ट एजेंसी है जो कार सेफ्टी का मूल्यांकन करती है।

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क्रैश टेस्ट के चरण

Tata Safari BIW

जब नया क्रैश टेस्ट प्रोजेक्ट शुरू होता है तो कार को सीधे लाइनअप से पिक नहीं किया जाता है और ना ही उनका सीधा क्रैश टेस्ट होता है। इसके बजाए इस प्रक्रिया में कई चरण होते हैं जिसमें सबसे पहले व्हीकल की बॉडी-इन-व्हाइट (बीआईडब्लयू) और इसके स्ट्रक्चर का कंप्यूटर सिमूलेशन के माध्यम से मूल्यांकन किया जाता है, जिसे पास करने पर ही पता चलता है कि यह टक्कर सहन कर सकती है या नहीं। बॉडी इन व्हाइट (बीआईडब्ल्यू) व्हीकल का बेसिक स्केलन फ्रेम है जिसे कई लंबे, क्रॉस और साइड पैनल मिलाकर तैयार किया जाता है। इस स्टेज में बीआईडी में डोर पैनल, इंजन कंपोटेनेंट और इंटीरियर फंक्शन का अभाव होता है।

इसके अलावा फाइनल क्रैश टेस्ट से पहले कार के रेस्ट्रेंट सिस्टम और इंटीरियर को भी न्यूनतम सेफ्टी पैरामीटर पर खरा उतरना होता है। यहां उल्लेखित प्रत्येक चरण को नीचे विस्तार से जानेंगेः

सिमूलेशन स्टेज

सिमूलेशन स्टेज के साथ यह प्रोसेस शुरू होती है जिसमें मॉडल का कंप्यूटर-एडेड इंजीनियरिंग (सीएई) के माध्यम से मूल्यांकन किया जाता है। सीएई में सिमूलेशन के माध्यम से व्हीकल पर कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं जिनमें ऑफसेट फ्रंट, साइड इंपेक्ट, साइड परपेंडीकूलर पोल, और पेडेस्ट्रेन प्रोटेक्शन टेस्ट शामिल होते हैं। इससे कंपनी फाइनल क्रैश टेस्ट से पहले व्हीकल की बॉडीशेल इंटीग्रिटी में किसी कमी का विश्लेषण करती है जिससे उसका समय और पैसा दोनों बचता है।

स्लेड सेर्वो एसेलरेशन टेस्ट

सीएई में मॉडल को सभी पैरामीटर पर खरा उतरने के बाद बारी स्लेड एसेलरेशन टेस्ट की आती है। इस टेस्ट में व्हीकल का क्रॉस सेक्शन तैयार किया जाता है और इसे एक प्लेटफार्म पर रखा जाता है जिसे ‘सर्वो एसेलरेशन प्लेटफार्म’ नाम दिया गया है जिसकी आप ऊपर फोटो देख सकते हैं। इसमें टेस्ट डमी को फ्रंट सीट पर रखा जाता है। इस टेस्ट का मुख्य उद्देश्य व्हीकल के इंडिविजुअल कंपोनेंट और रेस्टरेंट सिस्टम जैसे एयरबैग और सीटबेल्ट का मूल्यांकन करना है, साथ ही यह भी आंकलन किया जाता है कि स्क्रीन, डैशबोर्ड पैनल और कॉर्नर से पैसेंजर को नुकसान पहुंचता है या नहीं।

इस टेस्ट के लिए क्रॉस सेक्शन को सर्वो एसेलरेशन प्लेटफार्म पर रखा जाता है जिसे वायवीय सिलेंडर से 80 से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड पर दौडाया जाता है, जिससे पैसेंजर के लिए व्हिपलैश इफेक्ट पैदा होता है। इससे केबिन में रखी डमी को 40 किलोग्राम तक का फोर्स मिलता है और इससे कार एक्सीडेंट का रियल इंपेक्ट पता चलता है। इस टेस्ट में डमी तेज फोर्स से डैशबोर्ड की तरफ बढ़ती है और इस दौरान एयरबैग खुल जाते हैं।

स्लेड एसेलरेशन टेस्ट के दौरान व्हीकल के क्रॉस सेक्शन पर पोजिशन की गई डमी और इंटीरियर के बीच फोर्स एसेलरेशन का एनालिसिस किया जाता है। फुल क्रैश टेस्ट से पहले यह टेस्ट कई बार किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आगे बढ़ने से पहले पूरी रिसर्च और डाटा जुटा लिया जाए। यह टेस्ट रियर कार क्रैश टेस्ट से काफी कम खर्चीला होता है और इसलिए यह टेस्ट एक दिन में कम से कम दो बार या इससे ज्यादा बार किया जाता है।

फाइनल टेस्ट

सिमूलेशन और स्लेड एसेलरेशन टेस्ट के कई राउंड होने के बाद फाइनल कार क्रैश टेस्ट किया जाता है। इसमें प्रोडक्शन मॉडल का सभी कंपोनेंट के साथ पूर्व निर्धारित स्पीड पर क्रैश टेस्ट किया जाता है। हमारी विजिट के दौरान टाटा ने सफारी एसयूवी का फ्रंट ऑफसेट बैरियर क्रैश टेस्ट करने का निर्णय लिया।

क्रैश जोन में एक 200 मीटर लंबी टनल है जो बैरियर तक जाती है और इसके ऊपर एक मजबूत कंक्रीट की दीवार लगी है। टेस्ट व्हीकल के नीचले हिस्से को चेन से ड्राइव मॉड्यूल पर फिक्स कर दिया जाता है। यह मॉड्यूल एक ड्राइव सिस्टम से कनेक्टेड है जो एक केबल के जरिए व्हीकल को क्रैश बैरियर की तरफ खींचता है। क्रैश टेस्ट के दौरान फ्यूल टैंक में फ्यूल की जगह पानी भर दिया जाता है जिससे यह पता चल जाता है कि एक्सीडेंट के दौरान रियल फ्यूल कितना निकल सकता है।

टेस्ट शुरू होने से पहले एक अलार्म बजा जिसने सभी कर्मचारियों को टेस्टिंग जोन से दूर रहने के लिए सकेत किया, और फिर कार टनल के शुरुआती पॉइंट से आगे बढ़ना शुरू हुई। सिस्टम पर एसयूवी की स्पीड 64 किलोमीटर प्रति घंटा थी और एक सेकंड के अंदर सफारी बैरियर से टकरा जाती है। इसके बाद एसयूवी बाईं ओर पलट गई और इस टक्कर से उसका स्पेयर व्हील नीचे से अलग हो गया। फिर क्रैश के बाद की प्रोसेस को पूरा किया और हमें क्रैश टेस्ट के बाद गाड़ी का इंस्पेक्शन करने के लिए बुलाया गया।

क्रैश के बाद सफारी का बॉडी शेल बरकरार था जबकि ए-पिलर के आगे का हिस्सा टक्कर का इंपेक्ट कम करने के लिए टूट गया। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि टक्कर की स्थिति में पैसेंजर कंपार्टमेंट का आगे का हिस्सा टूटने पर इंपेक्ट केबिन में नहीं पहुंचता है। वाहन का वह हिस्सा जो क्रैश टेस्ट में टूट जाता है उसे क्रंबल जोन नाम से जाना जाता है। केबिन में सभी एयरबैग खुल गए थे और ऐसा प्रतीत हुआ कि गाड़ी में रखी डमी बिना किसी नुकसान से सेफ थी।

यह भी पढ़ें: नई टाटा सफारी में स्पेयर व्हील को कहां किया गया है फिट और इसे कैसे निकालें? वीडियो में देखें इसकी पूरी प्रोसेस

क्रैश टेस्ट कैसे रिकॉर्ड किया जाता है?

मुख्य क्रैश टेस्ट कुछ ही सेकंड में पूरा हो जाता है। लाइव क्रैश टेस्ट के दौरान हाई स्पीड क्रैश टेस्ट को रिकॉर्ड करने के लिए बैरियर एरिया के पास हाई-इंटेनसिटी लाइट को 1000 लक्स (200 प्रतिशत इंटेनसिटी) पर सेट किया जाता है। इस इंटेंस लाइटिंग से व्हीकल डेमेज की हर डीटेल्स की क्लियर विजिबिटी मिलती है। इसके अलावा क्रैश जोन में 10 से ज्यादा हाई-स्पीड कैमरा को इंस्टॉल किया गया है जो प्रति सेकंड 1000 फ्रेम पर रिकॉर्डिंग करते हैं।

क्रैश के बाद कार का क्या होता है?

क्रैश टेस्ट के बाद व्हीकल को चार से पांच घंटे में असिसमेंट जोन में भेज दिया जाता है। वहां पर इंजीनियर की टीम क्रैश टेस्ट व्हीकल और डमी का मूल्यांकन करती है। इस प्रोसेस में चार दिन तक लग सकते हैं। इसके बाद क्रैश टेस्ट हुई गाड़ी को स्क्रैप कर दिया जाता है।

कॉस्ट

फुल कार क्रैश टेस्ट में करीब 15 से 20 लाख रुपये का खर्चा आता है जिसमें क्रैश जोन स्थापित करना और डैमेज आदि शामिल है। यहां ध्यान देने वाली ये है कि इसमें व्हीकल की कॉस्ट शामिल नहीं है। इसके अलावा फाइनल इंपेक्ट टेस्ट से पहले सिमूलेशन और फेसलिटी सेटिंग-अप की कॉस्ट भी शामिल होती है।

तो इस तरह टाटा अपनी कारों को हाई सेफ्टी स्टैंडर्ड के साथ भारत की सड़कों पर उतारती है। इन इंटरल क्रैश टेस्ट के बाद कंपनी ग्लोबल एनकैप और भारत एनकैप जैसी क्रैश टेस्ट एजेंसी को अपनी कार सेफ्टी रेटिंग के लिए भेजती है। जैसा कि हमनें पहले बताया टाटा सफारी को वयस्क और चाइल्ड पैसेंजर सेफ्टी के लिए 5-स्टार सेफ्टी रेटिंग मिली हुई है।

आप इस इंटरनल सेफ्टी टेस्टिंग प्रक्रिया के बारे में क्या सोचते हैं? अगर आपके मन में कोई सवाल है तो हमें कमेंट में जरूर बताएं।

यह भी देखेंः टाटा सफारी ऑन रोड प्राइस

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