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सीटबेल्टः एक गैर जरूरी से कैसे बना सबसे अहम सेफ्टी फीचर, जानिए इसका अब तक का सफर

प्रकाशित: मई 18, 2023 08:32 pm । सोनू

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Seatbelts: From Optional To Standard

सीटबेल्ट कार में दिया जाने सबसे बेसिक सेफ्टी फीचर है जो दुर्घटना की स्थिति में पैसेंजर की जान बचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज आप चाहे कोई भी कार चला रहे हो या किसी भी कार में राइड कर रहे, आपकों उसमें सभी पैसेंजर के लिए सीटबेल्ट दिख जाएगा। लेकिन ये फीचर पहले नहीं मिलता था और एक समय ऐसा था जब सीटबेल्ट को उतना महत्वपूर्ण नहीं माना जाता था। आज हम जानेंगे सीटबेल्ट का कैसा रहा है अब तक का सफरः

सीटबेल्ट का इतिहास

Lap belts for front seats

सीटबेल्ट 1900 की शुरुआत से कारों का हिस्सा रहा है और इसका पहला पेटेंट 1885 में फाइल किया गया था। लेकिन उस समय कारों में सभी पैसेंजर के लिए लैप बेल्ट का इस्तेमाल होता था। 1946 में इन लैप बेल्ट को रिट्रेक्टेबल बना दिया गया जिससे इनका इस्तेमाल करना आसान हो गया, हालांकि उस दौर में ग्राहकों को सीटबेल्ट आकर्षक नहीं लगते थे जिसके चलते वे या तो बिना सीटबेल्ट के ही कार खरीदना चाहते थे या फिर कार खरीदने के बाद उन्हें हटा देते थे। इसके अलावा उस समय सीटबेल्ट स्टैंडर्ड सेफ्टी फीचर भी नहीं हुआ करता था बल्कि ये अतिरिक्त फीचर के तौर पर दिया जाता था।

Three-point seatbelt

फिर समय तेजी से बदला और 1955 में दो अमेरिकन कंपनियों ने थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट डिजाइन किया। इसके बाद 1959 में निल्स बोहलिन ने इसकी डिजाइन में सुधार किए और आज ये थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट हम अपनी कारों में देखते हैं। बोहलिन वोल्वो के चीफ डिजाइन इंजिनियर थे। इस डिजाइन को बोहलिन और वोल्वो ने पेंटेंट कराया था और कंपनी ने इस पेंटेंट को हर किसी के लिए ओपन रखा ताकि दूसरी कंपनियां भी इसके इस्तेमाल से लोगों की सेफ्टी को बेहतर कर सके।

Volvo 122

साल 1959 में वोल्वो पीवी 544 पहली कार थी जिसमें थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट दिया गया था और उसी साल वोल्वो ने अपनी थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट स्टैंडर्ड वाली पहली कार पेश की। इसके बाद दूसरी कंपिनयों ने भी अपनी गाड़ियों में थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट देने शुरू कर दिए थे।

सीटबेल्ट स्टैंडर्ड

जैसा कि हमने ऊपर बताया शुरुआत के सालों में कार में सीटबेल्ट स्टैंडर्ड फीचर नहीं था। लेकिन आज ये हर कार में देना जरूरी है। वोल्वो ने जब कार में सीटबेल्ट को स्टैंडर्ड सेफ्टी फीचर बना दिया था तो उसके बाद अमेरिका और यूरोपियन देशों में भी इसे फॉलो किया गया।

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1968 तक अमेरिका में सभी कारों में इसे स्टैंडर्ड कर दिया गया और यूरोपियन देशों में यह 1971 में हुआ। भारत सरकार ने 1994 में सीटबेल्ट को कारों में देना अनिवार्य किया था, लेकिन यहां कवल फ्रंट पैसेंजर के लिए यह फीचर देना जरूरी था। कुछ साल और गुजरने के बाद 2002 में पीछे वाले पैसेंजर के लिए भी कार में सीटबेल्ट देने का नियम बनाया गया।

Lap belt for rear passenger in Maruti Brezza

आज भारत में सभी कंपनियां अपनी कारों में सभी पैसेंजर के लिए सीटबेल्ट स्टैंडर्ड देती है। कुछ कारों में थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट मिलता है जबकि कुछ में पीछे की तरफ मिडिल पैसेंजर के लिए लैप बेल्ट दिया गया है। हालांकि जल्द ही भारत सरकार थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट को सभी कारों में स्टैंडर्ड देने की योजना बना रही है।

सीटबेल्ट पहनना हुआ अनिवार्य

कार में सीट बेल्ट होना ही केवल काफी नहीं है। किसी दुर्घटना की स्थिति में किसी की जान बचाने के लिए सीटबेल्ट को गाड़ी चलाते समय या फिर पैसेंजर सीट पर बैठते समय पहनना भी बेहद जरूरी है। लेकिन, लोगों को सीटबेल्ट पहनने के लिए राजी करना उसे स्टैंडर्ड बनाने से भी ज्यादा मुश्किल था, और आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इसे पहनना पसंद नहीं करते हैं। शुरुआती दिनों में जब कारें लैप बेल्ट से लैस थीं, काफी लोग इसे पहनना असुविधाजनक महसूस करते थे और इसे लगाने से मना कर देते थे, अब थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट के आने के बाद भी लोगों को इसे पहनना आसान नहीं लगता है।

Wearing A Seatbelt

चूंकि लोग सीट बेल्ट नहीं लगाते थे और ज्यादा से ज्यादा कारें सड़कों पर आने लगी थीं, सड़क दुर्घटनाएं और मौतें काफी बढ़ गईं थी। ऐसे में लोगों को घायल होने से बचाने के लिए नए कानून को पेश करने की आवश्यकता थी। 1970 में ऑस्ट्रेलिया अपने राज्य विक्टोरिया में सीटबेल्ट पहनने को लेकर नया कानून निकालने वाला पहला देश था।

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ऑस्ट्रेलिया के बाद अमेरिका दूसरा ऐसा देश था जिसमें सीटबेल्ट को पहनना 1980 में अनिवार्य किया गया था और इसके बाद दुनिया के कई सारे देश इस सूची में शामिल हो गए थे। भारत में यह कानून 2005 में लागू हुआ था और इसके लागू होने के बाद भी अधिकांश लोग अभी भी सीट बेल्ट नहीं लगाते हैं।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

चूंकि भारत में लोग सीटबेल्ट पहनना पसंद नहीं करते हैं, इसलिए दुर्घटनाओं में वृद्धि हुई है। ऐसा ही एक हादसा पिछले साल सितंबर में हुआ था जिसमें टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की मौत हो गई थी। इस दुर्घटना ने सरकार को कुछ नए संशोधन लागू करने पर मजबूर कर दिया था। सभी पैसेंजर के लिए थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट अनिवार्य करने की योजना बनाने के अलावा, भारत सरकार ने यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई दूसरे कदम भी उठाए हैं।

Seat belt clamps

सरकार द्वारा लिया गया इनमें से एक कदम सीटबेल्ट ना लगाने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाना था। इसके अलावा सरकार ने अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट को सीटबेल्ट क्लिप बेचने से रोकने के लिए भी कहा था और सभी सीटों के लिए सीटबेल्ट रिमाइंडर को एक अनिवार्य सेफ्टी फीचर बना दिया था। यह एक ऐसा फीचर है जो ड्राइवर व पैसेंजर को सीट बेल्ट लगाने के लिए अलर्ट करता है जिससे वह सुरक्षित रह सके।

मौजूदा डाटा

सरकार ने सीटबेल्ट अनिवार्य करने को लेकर नए-नए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं, ऐसे में आम जनता को अभी भी सीटबेल्ट पहनने के महत्व को समझने की जरूरत है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) की एक हाल ही में जारी हुई रिपोर्ट में कहा गया था कि 2021 में दुर्घटनाओं में शामिल 55,628 लोगों में से 16,397 लोगों ने सीट बेल्ट नहीं लगाने के कारण अपनी जान गंवाई थी, जिनमें ड्राइवर और पैसेंजर दोनों शामिल थे और बाकी को चोटें आई थी।

Wear Your Seatbelt

चूंकि सरकार और कार कंपनियां पैसेंजर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अहम भूमिका निभा रही है, ऐसे में हमें भी कानून का पालन करने और सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल करने की जिम्मेदारी लेनी होगी।

तो यह था सीटबेल्ट को इतिहास और हमने जाना कि कैसे आज गाड़ियों में यह स्टैंडर्ड हुआ और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार और कार कंपनियां क्या कदम उठा रही हैं। आप इस बारे में क्या सोचते हैं हमें लिखकर बताएं और याद रखें कि चाहे आप गाड़ी चला रहे हों या नहीं, सीट बेल्ट ज़रूर लगाएं।

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