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कुछ ऐसी रही फोर्ड के भारत में पतन की शुरूआत,दूसरी कंपनियों के लिए बड़ा सबक

प्रकाशित: नवंबर 07, 2021 01:32 pm । भानु

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हर ऑटोमोटिव ब्रांड को अच्छा प्रदर्शन करने के लिए लग्जरी सेगमेंट से ज्यादा मास मार्केट सेगमेंट पर फोकस करना पड़ता है। भारत में काफी इंटरनेशनल ब्रांड्स ने निवेश किया फिर भी उन्हें यहां काफी नुकसान उठाना पड़ा। पिछले 5 सालों में फोर्ड भारत से कारोबार समेटने वाली तीसरी कंपनी है। कंपनी ने ये फैसला उसको हुए बड़े नुकसान और कोई निश्चित रिटर्न नहीं होने के बाद लिया गया जबकि कंपनी ने यहां काफी निवेश किया है। हुंडई और मारुति की बाजार में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी होने से फोर्ड जैसी कंपनी की पैसेंजर ​व्हीकल सेल्स में हिस्सेदारी काफी कम रही। 

ऐसे शुरू हुई फोर्ड के पतन की कहानी

पिछले कुछ सालों में कुछ मा​स मार्केट ब्रांड्स के आने के बाद से ही फोर्ड की बाजार में हिस्सेदारी घटती चली गई। अपने 25 साल के कार्यकाल के अंत में, फोर्ड के मॉडल्स की अगस्त 2021 में 1.42 प्रतिशत मासिक बिक्री हुई, जबकि अगस्त 2020 में कंपनी का मार्केट शेयर 1.90 प्रतिशत रहा। फाइनेंशियल ईयर 2020-21 में कंपनी का मार्केट शेयर 1.75 प्रतिशत रहा जबकि फाइनेंशियल ईयर 2019-20 में कंपनी की बाजार में हिस्सेदारी 2.36 प्रतिशत थी। ऐसे में फोर्ड के लिए किसी नई प्लानिंग के साथ वापसी करना बहुत जरूरी हो गया था। 

Ford Endeavour

फोर्ड मोटर्स के प्रेसिडेंट और सीईओ जिम फार्ले ने एक बयान दिया कि "भारत में बड़े निवेश के बावजूद, फोर्ड ने पिछले 10 वर्षों में 2 बिलियन डॉलर से अधिक का घाटा खाया है और कंपनी के नए व्हीकल्स की डिमांड काफी तेजी से घटी।"

फोर्ड इंडिया के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अनुराग मेहरोत्रा ​​ने कहा, "हम प्रॉफिट के लिए एक स्थायी रास्ता खोज पाने में नाकामयाब साबित हुए।"

भारत में ग्लोबल ब्रांड्स के लिए चुनौतियां

भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र ने पिछले पांच वर्षों में चार नए ऑटोमोटिव ब्रांडों को लोकल प्रोडक्शन करते हुए देखा गया है, जबकि कुछ ने मार्केट में बने रहने के लिए लॉन्ग टर्म इंवेस्टमेंट भी किया है। 

इंडस्ट्री में बदलाव होने के बावजूद, वित्त वर्ष 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार केवल दो ब्रांड्स का बाजार में मार्केट शेयर सबसे अच्छा रहा जिनमें  मारुति सुजुकी 48.3 प्रतिशत और हुंडई 17.36 प्रतिशत शामिल है। 

Altroz, Harrier, Nexon, Nexon EV, Punch

इसके अलावा टाटा और महिंद्रा का मार्केट शेयर भी काफी अच्छा रहा और नेक्सन, नेक्सन ईवी, हैरियर, अल्ट्रोज़ और पंच जैसी कई नई कारों की बदौलत टाटा ने हाल ही में 10 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी हासिल की है। महिंद्रा भी 2025 तक अच्छी खासी ग्रोथ हासिल कर लेगी और उसकी एक्सयूवी700 के मार्केट में जबरदस्त हिट होने के आसार हैं। किआ मोटर्स का मार्केट शेयर भी 5.50 प्रतिशत है और उसकी सोनेट एसयूवी कार यहां काफी पॉपुलर हो चली है। दूसरी तरफ एमजी को भी हेक्टर एसयूवी की मदद से 1.12 प्रतिशत मा​र्केट शेयर मिला है। आने वाले कुछ महीनों में एमजी एस्टर की मदद से कंपनी को और भी फायदा होने की पूरी संभावना है। 

Kia Seltos and MG Hector

इस बीच, रेनो, निसान, होंडा और स्कोडा-फोक्सवैगन जैसे कंपनियों के 20 मॉडलों का शेयर भी मिला दें तो ये 10 प्रतिशत से कम है। अगस्त 2021 की मासिक बिक्री के अनुसार टोयोटा के पास 4.23 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है, कंपनी की इनोवा क्रिस्टा को बिक्री के शानदार आंकड़े मिल रहे हैं वहीं ग्लैंजा और अर्बन क्ररूजर भी अब काफी पॉपुलर हो चली है। 

मारुति ही भारत में केवल एकमात्र कंपनी है जिसने कोरोना काल में भी 1 लाख यूनिट से ज्यादा कारें बेचने में कामयाबी हासिल की है। इस ब्रांड की रेपुटेशन और शानदार सर्विस नेटवर्क दूसरे ब्रांड्स के लिए खतरा साबित हो रहे हैं। सरकार से मिले समर्थन के चलते मारुति का वर्चस्व का यहां वर्चस्व बढ़ा है जो दूसरे ब्रांड्स को यहा कामकाज समेटने पर भी मजबूर करता है साथ ​ही कस्टमर्स के पास नॉन मारुति मॉडल्स खरीदने के काफी कम विकल्प बचते हैं।

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उदाहरण के तौर पर यदि एक व्यक्ति जो एक नई कॉम्पैक्ट हैचबैक खरीदना चाहता है, उसके पास केवल मारुति और हुंडई के मॉडल्स के ही विकल्प बचते हैं और मारुति के पास तो इस सेगमेंट में कई मॉडल्स हैं। फोर्ड इस सेगमेंट में फिगो और फ्रीस्टाइल के साथ अन्य विकल्पों में से एक हुआ करती थी। हालांकि ये कारें कम बिका करती थी और अब फोर्ड के जाने के बाद से तो ये भी विकल्प खत्म हो चुका है। यहां तक ​​​​कि कॉम्पैक्ट एसयूवी स्पेस में क्रेटा और सेल्टोस का काफी दबदबा है। सब-4 मीटर एसयूवी सेगमेंट में सबसे अधिक वैरायटी है जहां 8 अलग-अलग ब्रांड की कारें मौजूद हैं और इसमें फोर्ड इकोस्पोर्ट भी एक अच्छा ऑप्शन हुआ करती थी। यहां, मारुति सबसे अधिक बिकने वाले मॉडल के साथ दूसरी कंपनियों पर हावी है, लेकिन अगस्त 2021 तक इसकी बाजार हिस्सेदारी घटकर केवल 24 प्रतिशत रह गई है।

यदि ब्रांड्स को इस तरह से ही संघर्ष करना पड़ा तो आने वाले समय में कस्टमर्स के पास ज्यादा विकल्प नहीं रहेंगे और ये चीज इंडस्ट्री के लिए अच्छी बात साबित नहीं होगी।

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