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ट्रेवलॉग: लाइफ में एकबार अरुणाचल प्रदेश का ट्रिप जरूर करें, यहां हर मोड़ पर मिलेगा आपको प्रकृति और एडवेंचर का फ्यूजन

प्रकाशित: जून 08, 2022 05:28 pm । भानु

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कंटेट:सोनी रैक्स

हिंदी अनुवाद: भानु शर्मा

भारत कितना बड़ा देश है कि इसकी कल्पना करना भी काफी मुश्किल है। यहां फासले इतने अधिक है कि अधिकांश लोगों के लिए देश के एक छोर से दूसरे छोर तक की यात्रा कर लेना किसी ​इंटनरेशनल ट्रिप से कम नहीं माना जा सकता है। इस दौरान संस्कृति में विविधता भी देखी जा सकती है। यही फील लेने के लिए हम निकल पड़े अरुणाचल प्रदेश की ओर। पश्चिम बंगाल के पूर्व में भारतीय राज्यों के संग्रह को अक्सर सामूहिक रूप से 'पूर्वोत्तर' कहा जाता है। इसलिए, जब एक स्थानीय ने अरुणाचल को उत्तर-पूर्व का उत्तर-पूर्व कहा, तो मुझे यह हास्यास्पद लगा। 

यह धारणा है कि मेरे जैसे कई यात्री देश के इन हिस्सों का पता लगाने के लिए इसे एक चैलेंज मानते हैं। मगर ट्रांस अरुणाचल ड्राइव इवेंट इस धारणा को पूरी तरह से बदलने का काम कर देता है। 

क्या है ट्रांस अरुणाचल ड्राइव

यह विभिन्न आयोजकों के साथ काम कर रहे अरुणाचल प्रदेश राज्य के पर्यटन बोर्ड द्वारा समर्थित एक इवेंट है। इस इवेंट के जरिए इस प्रदेश के पूर्व से लेकर पश्चिम तक कुछ खूबसूरत पर्यटक स्थलों तक लोगों के एक समूह को यात्रा करवाई जाती है। इस दौरान 12 दिनों में 2500 किलोमीटर कवर किए जाते हैं। यह मार्ग राज्य के सबसे दूर के कोनों तक फैला हुआ है और चीन, म्यांमार और यहां तक ​​कि भूटान के साथ भारत की राष्ट्रीय सीमाओं के करीब है। इस यात्रा के दौरान स्थानीय जनजातीय लोगों को करीब से जानने का मौका भी मिलता है जो आजतक जंगलों में रह रहे हैं। 

रैली के आयोजकों ने हममें से कुछ को पूरी यात्रा के चुनिंदा हिस्सों में भाग लेने की अनुमति दी। मैंने 2022 ट्रांस अरुणाचल ड्राइव के तीसरे और अंतिम चरण का विकल्प चुना जो मुझे राज्य के पश्चिमी कोने में पासीघाट से तवांग तक ले गया। 

हम अरुणाचल कैसे पहुंचे?

भारत के प्रमुख एसयूवी ब्रांड महिंद्रा ने ट्रांस अरुणाचल ड्राइव में टीम के साथ एक पार्टनरशिप की थी ताकि वे ऐसी कारें उपलब्ध करा सकें जो इस शानदार यात्रा को और ज्यादा सुविधाजनक बना सके। इस दौरान नई एक्सयूवी700, थार और स्कॉर्पियो के फर्स्ट जनरेशन मॉडल के कई एडिशन इसमें शामिल किए गए। हमारे पास एक्सयूवी 700 और थार प्रत्येक की लगभग चार यूनिट्स थीं, जबकि इस काफिले में शामिल बची हुई 30-यूनिट्स स्कॉर्पियो की थी जो असम और अरुणाचल प्रदेश के निवासियों की थी। इसके अलावा इस काफिले में थार के फर्स्ट जनरेशन मॉडल के कुछ मॉडिफाइड वर्जन भी शामिल थे। 

असम से शुरू हुई मेरी यात्रा

मौजूदा समय में अरुणाचल प्रदेश सरकार राज्य के बुनियादी ढांचे का विकास कर रही है, लेकिन फिलहाल यहां एक कमर्शियल एयरपोर्ट की कमी है। जो हवाई अड्डे मौजूद हैं वे मुख्य रूप से सेना द्वारा उपयोग किए जाते हैं। इसलिए, मैंने दिल्ली से डिब्रूगढ़ (असम में) के लिए उड़ान भरी और फिर अरुणाचल के पासीघाट के लिए रवाना हुआ, जहां मैं ट्रांस अरुणाचल ड्राइव कॉन्वॉय से मिला।

डिब्रूगढ़ हवाई अड्डे से पासीघाट तक की 150 किलोमीटर की यात्रा के दौरान मुझे वहां की सड़क की कंडीशन काफी अच्छी लगी। यह नेशनल हाईवे 515 था, और पहाड़ होने के कारण असम के मैदानी इलाकों की तुलना में अरुणाचल के पहाड़ी इलाके काफी सिकुड़े हुए थे। मुझे इसका अनुभव करने के लिए ड्राइविंग करने का बेहद ज्यादा मन कर रहा था। 

यहां मवेशियों की बहुतायत है जो कभी कभी हाईवे के बीच मेंं आ धमकते हैं। यहां पर एक मुर्गी तक को आपसे खतरा पहुंच जाए तो यहां के स्थानीय लोग आपसे झगड़ा कर सकते हैं और आप किसी अनचाही मूसीबत में पड़ सकते हैं, इसलिए बहुत ज्यादा ध्यानपूर्वक ड्राइव करें।

मैं इस रैली के तीसरे चरण के अगले दिन इसमें शामिल हुआ था। तब तक काफिला भारत-चीन सीमा के पास मेचुका घाटी का दौरा कर पासीघाट लौटा चुका था। सुबह की ब्रीफिंग के बाद हमें मौजूदा समूह से परिचित कराने के लिए, हमें अपनी कार सौंपी गई और काफिले को रवाना किया गया। मुझे एहसास हुआ कि हम वापस असम की ओर जा रहे थे, क्योंकि यह उस दिन के गंतव्य, पक्के केसांग के लिए सबसे आसान और जल्दी से पहुंचा देने वाला रास्ता था। 350 किलोमीटर की अधिकांश दूरी असम के मैदानी इलाकों के माध्यम से आसानी से और जल्दी से कवर की गई थी।

हम पासीघाट से लगभग 200 किमी दूर दोईमुख शहर के पास अरुणाचल प्रदेश में फिर से प्रवेश कर गए। इस दौरान मैं एक महिंद्रा स्कॉर्पियो की पिछली सीट पर था, जिस पर दो साथी मेहमान और ओनर/ड्राइवर भी सवार थे। ड्राइविंग ना करने का एक फायदा ये भी है कि आप आराम से रास्ते में आने वाले सुंदर सुंदर नजारे देख सकते हैं। दो साल से मास्क लगाने के बाद पहली बार में ताजी हवा का आनंद ले रहा था। 

एक्सयूवी700 की बैकसीट पर रहा कुछ ऐसा अनुभव

दोईमुख से पहले लंच ब्रेक लिया गया जिसके बाद मैं एक्सयूवी700 की पिछली सीट पर बैठ गया। ट्रांस अरुणाचल रैली के लिए दी गई एक्सयूवी700 का टॉप-मॉडल एएक्स7 पेट्रोल-ऑटोमैटिक वेरिएंट और एएक्स7 डीजल-ऑटोमैटिक मॉडल था। स्कॉर्पियो की बैक सीट के मुकाबले एक्सयूवी700 की बैक सीट पर मुझे ज्यादा कंफर्ट मिल रहा था।

चूंकि हमारी एक्सयूवी700 में केवल 4 लोग सवार थे इसलिए इसका केबिन काफी स्पेशियस नजर आ रहा था। वहीं पैनोरमिक सनरूफ होने के कारण केबिन में और ज्यादा खुलेपन का अहसास हो रहा था। इसके जरिए अरुणाचल की हरी भरी वादियों को निहारने का और भी आनंद आ रहा था। ग्लास रूफ पर बारिश की गड़गड़ाहट देश के इस हिस्से में यात्रा करते समय माहौल में चार चांद लगा रही थी।

दिन का अंतिम पड़ाव पक्के केसांग टाइगर रिजर्व के किनारे पर एक कैंपसाइट था जो काफी सुंदर जंगली इलाका था। काफिले के आने से पहले ही तंबू लगाए जा चुके थे ताकि हम आराम कर सकें। शानदार डिनर और ड्रिंक के बाद एकमात्र संघर्ष स्लीपिंग बैग में सोने का था। साल के इस समय, मई के मध्य में, मौसम ज्यादातर सुहावना था और तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहता था। रात के इस पड़ाव की मेजबानी  इस क्षेत्र का मूल निवासी कर रहा था, जो न्याशी जनजाति का सदस्य था। उन्होंने शाम के लिए पारंपरिक न्याशी पुरुषों की पोशाक के साथ इस जनजाति के प्रतिष्ठित हॉर्नबिल हैट पहनी हुई थी जो एनिमल फ्रेंडली थी।

एक अन्य पर्यावरणीय परिवर्तन आईएसटी पर आधारित सूर्योदय और सूर्यास्त का समय है जो देश के मध्य से होकर गुजरता है। पूर्व दिशा आगे होने के कारण, यहां सूरज सबसे पहले भी उगता है और जल्दी ही डूब जाता है। 

तवांग को निकले ​मगर उससे पहले दिरांग में भी रुके 

हमने पक्के केसांग के पास अपने कैंपसाइट को छोड़ दिया और अगले दिन जल्दी तवांग की ओर चल पड़े। 400 किमी की दूरी दो दिनों में तय की जानी थी, ताकि हमारा काफिला रास्ते में दर्शनीय स्थलों और दृश्यों का आनंद ले सके। हमें पहले दिन 290 किमी की दूरी तय करनी थी और दिरांग में रुकना था। इस दौरान मैं पेट्रोल-ऑटोमैटिक एक्सयूवी700 में बैठा था।

यहां से पूरी यात्रा पहाड़ियों में होगी और मैं महिंद्रा के 200 पीएस 2-लीटर टर्बो-पेट्रोल इंजन की ताकत से भी रुबरु होने जा रहा था। मुझे नेशनल हाईवे 13 की सड़क की क्वालिटी काफी अच्छी लगी और मैंने एक्सयूवी700 को ड्राइव भी किया। 

दिरांग इसी नाम की नदी के बगल में एक बस्ती है और आपको शहर के प्रवेश द्वार पर घाटी का एक अच्छा दृश्य दिखाई देता है। यह ट्रांस अरुणाचल ड्राइव, त्सेरिंग लखपा के प्रमुख आयोजन सदस्यों में से एक का होम टाउन भी है।

खुद एक सफल रैली ड्राइवर होने के नाते लखपा भी एक एक्सयूवी700 ड्राइव कर रहे थे और हम में से बाकी लोगों के लिए सुगम मार्ग सुनिश्चित करने के लिए हमेशा काफिले से कुछ किलोमीटर आगे थे। उन्होंने उस रात के खाने के लिए अपने आवास पर हम सभी की मेजबानी की, हमें उस क्षेत्र की स्थानीय संस्कृति और व्यंजनों में से कुछ से परिचित कराया। इसमें अपोंग नामक एक पेय शामिल था जो पूर्वोत्तर की जनजातियों के बीच लोकप्रिय है और चावल के किण्वन द्वारा तैयार किया जाता है। यदि आप देश के इस हिस्से में घूम रहे हैं और आप शराब के शौकीन हैं तो यह ड्रिंक जरूर आपको ट्राय करनी चाहिए। इसके बाद कहीं निकले नहीं और खाने का लुत्फ उठाने के बाद एक अच्छी नींद लें।

स्लो सेक्शंस

अब जो आगे का रास्ता ​था उसमें डामर वाली सड़कों का हिस्सा काफी कम था। रास्ते में उबड़-खाबड़ पैच थे, जिनमें से अधिकांश सड़कें निर्माणाधीन थीं। कुछ पूरी तरह से नई सड़कें थीं, जबकि कुछ की भूस्खलन के बाद मरम्मत की जा रही थी।

बारिश के कारण भूस्खलन एक सामान्य घटना है और अरुणाचल के इन हिस्सों में यातायात में अक्सर रुकावट होती है। हम भी दिरांग के रास्ते में एक ताजा भूस्खलन की चपेट में आ गए। सौभाग्य से हम इसमें फंसे नहीं 2 घंटे में ही रास्ता साफ कर दिया गया। 

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि लैंड स्लाइड के बाद जरूरी नहीं जल्दी से रास्ता साफ कर लिया जाए। आप कहां हैं, भूस्खलन की गंभीरता कितनी है और निकटतम कंस्ट्रक्शन व्हीकल की उपलब्धता के आधार पर, आपको अपनी यात्रा जारी रखने में कई घंटे लग सकते हैं। उबड़-खाबड़ और टूटे हुए पैच के लिए, एसयूवी में होना एक राहत की बात थी। थार और स्कॉर्पियो के लिए ऐसे पैच में चलना ज्यादा मुश्किल नहीं था जबकि फुल लोडेड एक्सयूवी700 भी अधिकांश कीचड़ वाले रास्तों पर आराम से ड्राइव की जा रही थी। 

विभिन्न व्हीकल हैल्थ टेलीमैटिक्स और ड्राइवर डिस्प्ले पर देखे गए टायर प्रेशर मॉनिटर ने बहुत जरूरी जानकारी प्रदान की और चट्टानी रास्तों को पार करते वक्त इन फीचर्स ने काफी मदद की। 

सेला पास की नैसर्गिक खूबसूरती

दिरांग से तवांग तक हमारे मार्ग में एक बीआरओ द्वारा तैयार किया गया एक सेक्शन खंड शामिल था जो पहले से ही यात्रियों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल कर चुका है। सेला दर्रा एक पहाड़ी मार्ग है जो पश्चिम कामेंग जिले को तवांग जिले से जोड़ता है। यह मार्ग हमें हिमालय पर्वत श्रृंखला के इस छोर की अबाधित प्राकृतिक सुंदरता के मध्य से ले गया। 

अब यहां से चढ़ाई वाला रास्ता शुरू हो चुका था। इस दौरान हमारे काफिले को घने कोहरे ने घेर लिया। इससे हम हिमालय पर्वत श्रंखला को देख नहीं पा रहे थे और ऊपर जाने पर अब हम बादलों के बराबर पहुंच चुके थे। सड़क तब तक चढ़ती रही जब तक ऐसा नहीं लगा कि हम उनके ऊपर हैं। केवल कुछ चोटियाँ उस पर्वत की तुलना में उल्लेखनीय रूप से ऊँची हैं, जिस पर हम थे, उन चोटियों पर बर्फ देखी जा सकती थी। उस दृश्य को देखकर में कहीं डूब सा गया था।

ऐसा लग रहा था कि मैं किसी प्लेन की खिड़की से बाहर की तरफ झांक रहा हूं। जब आप अंततः सेला दर्रे पर पहुँचते हैं तो वहां आपको एक बोर्ड दिखाई पड़ेगा जो आपको बताएगा कि आप वास्तव में कितनी ऊंचाई पर हैं। सेला दर्रे के टॉप पर, आप समुद्र तल से 13,700 फीट या लगभग 4,175 मीटर ऊपर होते हैं। उदाहरण के लिए, दिरांग समुद्र तल से लगभग 1,600 मीटर ऊपर है। पहाड़ की चोटी पर एक झील भी है जिसे सेला झील कहा जाता है और ये हमारा एक पड़ाव भी था। वहां धूप होने के बावजूद मुझे ऐसा लग रहा था कि ठंडी हवा मुझे चीर रही है जिसने मेरे अंदर के पानी को भी जमा दिया है। इस ऊंचाई पर पतली हवा के साथ, इसने मुझे नए वातावरण में खुद को ढालने से पहले सांस देने का काम किया क्योंकि अक्सर इतनी ऊंचाई पर आपको सांस संबंधी समस्या होने लगती है। 

मोटी जैकेट पहनने से मदद तो मिली, लेकिन ठंडी हवा के कारण आपके चेहरे और हाथों को नुकसान पहुंच सकता है। हम में से एक छोटा ग्रुप झील के किनारे दूसरी तरफ चला गया, जबकि अन्य लोग कारों के साथ हमारा इंतजार कर रहे थे। मैंने झील में हाथ डुबाया और फौरन उसे बाहर निकाल लिया क्योंकि उस दौरान मुझे ऐसा लगा कि ये मेरी हड्डी को ही गला देगा। 

हम सेला दर्रे से नीचे अपने रास्ते में धुंध के एक बादल से गुजरे और ऐसा लग रहा था कि हम आंखे बंद करके ड्राइव कर रहे हैं। सर्दियों के दौरान बर्फ का अनुभव करने के लिए सेला दर्रा भी एक बेहतरीन क्षेत्र है। अप्रैल 2021 में ट्रांस अरुणाचल ड्राइव के पहले संस्करण में, तवांग के रास्ते में काफिले को इसका भरपूर सामना करना पड़ा।

अरुणाचल के जादुई झरने 

तवांग अभी भी 70 से 80 किमी दूर था और हमारे पास आधा दिन था। मैं एक बार फिर एक्सयूवी700 ड्राइव कर रहा था और इस बार हम पहाड़ों के नीचे थे। भारी सैन्य यातायात के कारण ये सड़कें थोड़ी अधिक खराब हो गई थीं। फिर भी, मरम्मत या विकास के दौर से गुजर रहे कुछ हिस्सों की बात छोड़ दें तो यहां ड्राइव करना आसान था। जंग के पास हमारे लंच स्टॉप तक यह 50 किमी से भी कम दूरी की छोटी ड्राइव थी। जंग शहर से गुजरने के तुरंत बाद एनएच13 खत्म हो गया और हम जंग फॉल्स पर पहुंच गए। इसे लोकप्रिय रूप से नुरानांग जलप्रपात के नाम से भी जाना जाता है, जिसका नाम उस नदी के नाम पर रखा गया है जिसमें यह बहती है। वर्ष के इस समय में यहां पानी काफी तेजी से नीचे की ओर गिरता है और पानी के नीचे चट्टानों से टकराने के कारण एक मोटी धुंध बन जाती है। ये सब देखना काफी शानदार लगता है। केवल इस झरने को देखने मात्र के लिए यहां आया जा सकता है। 

सबसे अच्छी बात यह थी कि आप झरने के नीचे आसानी से पहुंच सकते हैं। हमने सड़क के अंत में जंग हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन पर कार को पार्क किया और सीढ़ियों के जरिए नदी की ओर चले गए।

आखिरकार तवांग पहुंचे

हम तवांग शहर से लगभग 30 किमी दूर थे और मैं फाइनल स्ट्रैच के लिए पिछली सीट पर लौट आया। अरुणाचल में अब तक मैंने देखी यह पहली वास्तविक आबादी वाली बस्ती थी। यहां मुझे इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के रूप में प्रगति के संकेत दिखाई दे रहे थे और यहां काफी ट्रैफिक भी नजर आ रहा था। जब तक हम प्रसिद्ध तवांग मठ के पास अपने होटलों में पहुँचे, तब तक लगभग शाम हो चुकी थी। ये जगह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है क्योंकि कहा जाता है कि यह शहर 17 वीं शताब्दी के अंत में छठे दलाई लामा का जन्मस्थान था। इसके अलावा, कहा जाता है कि मठ की स्थापना 1680 में पांचवें दलाई लामा के आदेश पर की गई थी।

मठ में कई इमारतें शामिल हैं जो भिक्षुओं की विभिन्न जरूरतों को पूरा करती हैं। यहां स्कूलों से लेकर रहने के लिए आवास तक, प्रार्थना कक्ष से लेकर डाइनिंग हॉल तक, और बहुत कुछ है जो मौजूद है। दुर्भाग्य से, जब तक हम 14 मई की शाम को तवांग पहुंचे, तब तक यह बंद हो गया था और अगली सुबह शहर से निकलने से पहले मैं समय के अभाव के चलते यहां जा नहीं पाया। हालांकि मुझे लाइब्रेरी देखने को मिली, जो हमारे होटल के सबसे नजदीक की इमारत थी। इस मठ के वास्तविक पैमाने को देखने का सबसे अच्छा तरीका तवांग शहर के उत्तर की ओर है।

जेमिथांग विजिट

यह तकनीकी रूप से 2022 ट्रांस अरुणाचल ड्राइव का आखिरी दिन था और हम तवांग सर्किट हाउस में राज्य पर्यटन बोर्ड के सदस्यों के साथ शामिल हुए थे। रैली के लिए अंतिम गंतव्य अरुणाचल प्रदेश की उत्तर-पश्चिमी सीमा के पास एक स्थान जेमिथांग था, जो चीन सीमा के नजदीक है। 

यात्रा के इस अंतिम चरण के लिए, मुझे महिंद्रा थार ड्राइव करने का काम सौंपा गया था। मुझे महिंद्रा थार 2.2-लीटर डीजल इंजन जो कि 6-स्पीड मैनुअल ट्रांसमिशन से लैस था उसका एएक्स (ऑप्शनल) ट्रिम ​ड्राइव करने के लिए दिया गया था। इस स्पेशल यूनिट में स्टील व्हील्स पर ऑफ-रोडिंग टायर चढ़े हुए थे, जिसके कारण ये राइड थोड़ी प्रभावित हो रही थी। भले ही हम अब नेशनल हाईवे 13 पर नहीं थे, लेकिन सड़कें मुख्य रूप से बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन और राज्य सरकार के प्रयासों की बदौलत सुचारू थीं। 

ज़मीथांग के रास्ते में, हम शुंगस्टर झील पर रुके। उस दिन ये लेक शांति और प्राकृतिक सौन्दर्य का जीवंत चित्रण लग रही थी। चीन सीमा के निकट होने के कारण इस क्षेत्र में शहर की तुलना में सैना की उपस्थिति ज्यादा थी। लेकिन नतीजतन, झील पर एक अच्छा कैफे भी है और यहां गर्म कपड़े भी बेचे जा रहे थे। ज़मीथांग के रास्ते में कोई और स्टॉप नहीं था और यहां पहाड़ियों के नीचे हरे भरे और घुमावदार रास्ते थे जिससे ये मार्ग काफी सुंदर लग रहा था। हमारे मार्ग में कुमरोत्सर नामक एक सड़क थी जिसमें पहाड़ से नीचे और घाटी के साथ 66 मोड़ आए। 

इस पूरे सेक्शन में डामर की सड़क होने के बावजूद ये थोड़ी उबड़ खाबड़ थी जिसे मरम्मत की जरूरत थी। यदि इस सेक्शन को चौड़ा और चिकना किया जाता है, तो यह स्पोर्ट्स कारों के लिए भी एक रोमांच कर देने वाला रास्ता साबित हो सकता है। हालांकि, ऑफ-रोडिंग टायरों के साथ थार को इस हिस्से में काफिले में नेविगेट करना थोड़ा मुश्किल था। झील से 35 किमी की यात्रा को कवर करने में अभी भी लगभग 2 घंटे लग गए। 

ज़मीथांग में दोपहर के भोजन की व्यवस्था शहर से ठीक पहले एक खुले मैदान में की गई थी। अभी तक की यात्रा में इससे अच्छा भोजन हमें नहीं मिला था जिसकी व्यवस्था हमारे मेजबान त्सेरिंग ल्हामू के सौजन्य से की गई और उन्होंने हमें एक से एक स्थानीय व्यंजनों का स्वाद चखाया। ल्हामू इस क्षेत्र के विधायक जंबे ताशी की पत्नी हैं। स्थानीय निवासी मैदान के दूसरे हिस्से में क्रिकेट का खेल खेल रहे थे जिन्हें देखकर काफी आनंद आ रहा था। 

अब तवांग की ओर फिर लौटते समय मैं थार की बैक सीट पर जा बैठा। अब हम कुछ और आकर्षक लोकेशंस को देखने के लिए दूसरा रास्ता ले चुके थे। एक बार फिर हम एनएच 13 पर थे और तवांग तक पहुंचने के लिए हमें 90 किलोमीटर की यात्रा करनी थी। रास्ते में गोरसम चोरटेम नामक एक और बौद्ध संरचना के हमे दर्शन हुए, जिसे इस क्षेत्र का सबसे बड़ा 'स्तूप' कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो, एक 'स्तूप' एक गुंबददार संरचना है जिसमें प्राचीन अवशेष होते हैं और इसका उपयोग ध्यान के लिए किया जाता है। हमारा अगला पड़ाव धार्मिक महत्व की एक अन्य संरचना लुमला के पास तारा देवी की विशाल प्रतिमा थी।

यह हमारे द्वारा देखी गई अधिक आधुनिक संरचनाओं में से एक है क्योंकि इसे हाल ही में पुनर्निर्मित किया गया था। प्रतिमा अपने पैमाने में काफी प्रभावशाली है और अभी भी इसमें एक ताजा चमक थी। 

अभी तवांग यहां से 45 किलोमीटर दूर था और आराम से ड्राइव करते हुए हमें इसे कवर करने में दो घंटे लग गए थे। दिन के लिए हमारा अंतिम पड़ाव तवांग युद्ध स्मारक था जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान तवांग के आसपास लड़ने वाले सैनिकों को समर्पित है। स्मारक का दौरा करने के बाद, हम इस इवेंट के समापन के लिए शहर वापस आ गए।

तवांग की विशाल बुद्ध प्रतिमा पर पूरे काफिले का औपचारिक स्वागत किया गया। फ्लैग-इन का नेतृत्व अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने किया।

हमारी शाम का समापन एक भव्य कार्यक्रम के साथ हुआ, जिसमें आयोजकों और राज्य के अधिकारियों के साथ हमारी बातचीत भी हुई। साथ ही हमें यहां लोक संस्कृति की रंगारंग प्रस्तूतियां भी दिखाई गई। 

घर वापसी

ट्रांस अरुणाचल ड्राइव 2022 का आधिकारिक रूप से समापन हो गया था। हम में से अधिकांश के लिए गुवाहाटी हवाई अड्डे से घर वापस जाने का समय हो गया था। यह 500 किमी से अधिक की यात्रा थी जिसमें 300 किलोमीटर तक का तो पहाड़ी रास्ता था। महिंद्रा एक्सयूवी700, थार और स्कॉर्पियो का हमारा काफिला तमाम बाधाओं को पार करते हुए समय पर एयरपोर्ट पहुंच गया। 

इस यात्रा का निष्कर्ष

अगर मुझे अरुणाचल प्रदेश की अपनी यात्रा का एक शब्द में वर्णन करना पड़े, तो यह 'सौंदर्य' होगा। इससे पहले मैं हिमाचल प्रदेश की यात्रा में हिमालय पर्वत को कई बार करीब से देख चुका हूं, मगर देश के इस छोर में होना एक अलग ही अनुभव था। ऐसा प्रतीत होता है कि विकास की कमी ने इलाके की प्राकृतिक हरियाली को संरक्षित रखा है और यह साल के इस समय में ये जीवंत हो उठता है। कंक्रीट के जंगल का निवासी मैं इस समय ऐसा महसूस कर रहा था जैसे कि मैं 'द जंगल बुक के किसी दृश्य को जी रहा हूं। 

रैली के अपने चरण में 1,000 किमी से अधिक की दूरी तय करने के बाद, मैं कहूंगा कि 80 प्रतिशत मार्ग शानदार था जबकि 20 प्रतिशत वहां पहुंचने का एक जरियाभर था। इस क्षेत्र में जाने से पहले आप साथ ही सुनिश्चित करें कि आपको राज्य भर में आसानी से यात्रा करने के लिए समय से पहले सभी आवश्यक परमिट मिल जाए, क्योंकि यह देश का एक हाई सिक्योरिटी एरिया है।

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