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जीरो से 6ः जानिए कैसे कारों में एयरबैग बन गया एक जरूरी फीचर

प्रकाशित: मार्च 31, 2023 03:55 pm । भानु

विकसित देशों की तुलना में भारत की ऑटोमोटिव इंडस्ट्री अभी काफी नई है, मगर ये सन 2000 और सन 2010 के दौर में काफी बदली भी है। यहां मास मार्केट मॉडल्स में अफोर्डेबिलिटी और रनिंग कॉस्ट देखी जाती है, जबकि डिजाइन, परफॉर्मेंस और सेफ्टी को काफी लंबे समय से दरकिनार ही रखा गया था।

दुनिया में 2010 के आखिर तक भारत एक ऐसा देश रहा है जहां सबसे ज्यादा सड़क हादसे हुए। ऐसे में इस मामले पर अधिक ध्यान देकर और सबसे अफोर्डेबल मॉडल्स में भी व्हीकल सेफ्टी के महत्व पर भारतीय ग्राहकों को एक तरह से शिक्षित करने के लिए ग्लोबल एजेंसियों की पहल पर अब कार मैन्युफैक्चरर्स और सरकारी संस्थाए इस पर काम करने लगी है। फोक्सवैगन और होंडा ने पैसेंजर सेफ्टी को पुख्ता करने की दिशा में अपने मॉडल्स में खासतौर पर ज्यादा एयरबैग्स देना शुरू किए। यहां तक यदि कोई ग्राहक 10 लाख रुपये तक की भी कोई कार खरीदने जाता है तो वो पूछता है कि ‘कितने एयरबैग हैं।'

इंडियन ऑटोमोटिव इंडस्ट्री में एयरबैग का कैसे बढ़ा महत्व, इस बारे में आप ज्यादा जानेंगे आगेः

दुर्घटना होने पर एयरबैग ड्राइवर और पैसेंजर्स के सिर, गर्दन और छाती को सुरक्षा प्रदान करते हैं। एयरबैग सेंसर के जरिए एक्टिवेटेड रहते हैं जो 20 से 40 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड या फिर उससे ज्यादा की स्पीड से गाड़ी के टकराने पर उसे डिटेक्ट कर लेते हैं। बजट कारों में केवल दो फ्रंट एयरबैग दिए जा रहे हैं जो स्टीयरिंग व्हील और डैशबोर्ड से बाहर आते हैं। ड्युअल एयरबैग्स के लिए आमतौर पर सेंसर्स फ्रंट बंपर पर लगे होते हैं जबकि साइड एयरबैग्स के सेंसर्स दरवाजों पर लगे होते हैं। कुछ महंगी कारों में तो 10 एयरबैग्स तक दिए जाते हैं।

पैसेंजर की सेफ्टी के लिए एयरबैग्स का खुलना मात्र मिलीसेकंड्स का काम है। मात्र कुछ ही सेकंड्स में सेंसर के जरिए एयरबैग्स को सिग्नल पहुंच जाता है।

जब नहीं मिला करते थे एयरबैग

एक दशक पहले तक तो बजट कारों में एयरबैग्स का फीचर दिया ही नहीं जाता था और ये केवल टॉप मॉडल में ही मिला करता था या फिर इसे ऑप्शनल रखा जाता था। यहां तक कि बेस वेरिएंट्स में तो एंटी लॉक ब्रेकिंग सिस्टम एबीएस और रियर पार्किंग सेंसर्स जैसे बेसिक सेफ्टी फीचर्स तक नहीं आते थे। इसका मतलब यह हुआ कि हाईवे स्पीड के दौरान कॉम्पैक्ट हैचबैक में आमने सामने की टक्करों को अक्सर घातक माना जाता था। इसके बाद सेफ्टी को लेकर नजरिया बदलने लगा।

फोक्सवैगन पोलो ऐसी बजट कार थी जिसमें एयरबैग स्टैंडर्ड दिया गया। इसके बाद होंडा और टोयोटा ने भी ऐसा करना शुरू किया, वहीं टाटा, महिंद्रा और रेनो ने अपनी कारों के मिड वेरिएंट से दो फ्रंट एयरबैग्स देने शुरू किए। केवल मारुति सुजुकी ही एक ऐसी कंपनी थी जो इसमें पीछे रह गई और यहां तक कि ये अपनी कारों के टॉप वेरिएंट्स में एयरबैग्स नहीं देती थी। इसके लिए आपको फिर ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते थे।

साल 2019 में सरकार ने सभी कारों में ड्राइवर एयरबैग को अनिवार्य कर दिया। नतीजतन कई ब्रांड्स के एंट्री लेवल मॉडल्स तक में ये फीचर मिलना शुरू हो गया।

अब स्टैंडर्ड सेफ्टी फीचर बन चुका है ये

ऑटोमोटिव की सेफ्टी में समय के अनुसार बड़े बदलाव आए हैं। जनवरी 2022 में सरकार ने कारों में ड्युअल एयरबैग्स को स्टैंडर्ड सेफ्टी फीचर कर दिया और फिर अब इस साल इनकी संख्या बढ़ाकर 6 कर दी जाएगी। इसके अलावा ग्लोबल एनकैप भी कारों के क्रैश टेस्ट करते हुए उन्हें सेफ्टी रेटिंग्स देती है जिससे अब ग्राहक इनकी सेफ्टी रेटिंग देखकर ही कारें खरीदने का निर्णय लेते हैं। इससे अब मैन्युफैक्चरर्स भी अपनी सेफ्टी फीचर लिस्ट को मॉडिफाय करने लगे हैं और 10 लाख रुपये से कम बजट की कारों के टॉप वेरिएंट्स में आपको 6 एयरबैग्स तक के फीचर मिल जाएंगे और इससे कारों को अच्छी सेफ्टी रेटिंग मिलने में भी मदद मिलती है।

बता दें कि फोर्ड फिगो और फ्रीस्टाइल दो ऐसी अफोर्डेबल कारें थी जिनमें 6 एयरबैग्स तक मिला करते थे। आज ग्राहक भी 6 एयरबैग्स तक की डिमांड करते हैं जिससे कारों की कीमत में भी इजाफा हुआ है। हुंडई वरना, क्रेटा और किआ सेल्टोस जैसी 10 लाख से 15 लाख रुपये तक के बजट में आने वाली ऐसी कारें हैं जिनमें ये फीचर स्टैंडर्ड दिया जा रहा है।

ज्यादा एयरबैग से भी सेफ्टी नहीं होती है सुनिश्चित

भारत में सरकारी एजेंसियों ने रोड सेफ्टी में सुधार लाने के लिए कारमेकर्स को ज्यादा एयरबैग स्टैंडर्ड देने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, पैसिव सेफ्टी फीचर्स के बढ़ाने के बजाए पैसेंजर्स की सेफ्टी में सुधार करने के कुछ और तौर तरीके भी अपनाए जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर किआ कैरेंस पहला ऐसा मास मार्केट मॉडल है जिसमें 6 एयरबैग्स स्टैंडर्ड दिए गए हैं जबकि इसे केवल 3 स्टार सेफ्टी रेटिंग मिली है। मगर कुछ ऐसी कारें जिनमें केवल ड्युअल फ्रंट एयरबैग्स दिए गए हैं, मगर उन्हें 5 स्टार सेफ्टी रेटिंग प्राप्त हुई। इस पर क्या है हमारा नजरिया दिए गए लिंक पर क्लिक कर देखें।

फैक्टः जब अमेरिका जैसे देश में पहली बार एयरबैग देने शुरू किए गए तो कई ब्रांड्स ये मानते थे कि ये सीटबेल्ट्स के रिप्लेसमेंट है। हालांकि ये आईडिया ज्यादा दिन नहीं टिका और सीटबेल्ट्स को दिया जाना बंद नहीं हुआ।

यहां तक कि कारों में एयरबैग्स दशकों से मिल रहे हैं, मगर अब भी मैन्युफैक्चरर्स इन्हें और भी ज्यादा प्रभावी बनाने पर काम कर रहे हैं। इस बीच बेस लेवल टेक्नोलॉजी को ज्यादा किफायती होना चाहिए, जिससे कार खरीदने वाले ग्राहकों पर ज्यादा बोझ ना बढ़े। जहां एयरबैग पैसेंजर सेफ्टी का एक पूरा हल नहीं है, मगर इनका स्टैंडर्ड होना एक सही चीज है।

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