भारत में 2027 तक डीजल गाड़ियों पर बैन लगाने की सिफारिश: पहले इन 3 चुनौतियों का जरूरी है समाधान
सरकार ने अभी 2027 से डीजल बैन पर प्रतिबंध नहीं लगाया है और अभी रिपोर्ट की समीक्षा की जा रही है
पेट्रोलियम और नैचुरल गैस मंत्रालय द्वारा गठित एक पैनल ने सरकार को 2027 तक भारत में डीजल गाड़ियों को बंद करने का सुझाव दिया है। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऐसे शहर जहां एक मिलियन से ज्यादा लोग रहते हैं या जो शहर ज्यादा प्रदुषित हैं, वहां पर फोर-व्हीलर डीजल कारों को बैन कर देना चाहिए। देश की आबादी और खराब होती एयर क्वालिटी को देखते हुए यह नियम हर कस्बे और शहर पर लागू होता है।
सबसे पहले हम आपको यह स्पष्ट कर दें कि अभी तक सरकार ने इस रिपोर्ट में दिए गए सुझावो को स्वीकार नहीं किया है और फिलहाल यहां डीजल कारों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। सरकार अभी इस रिपोर्ट का रिव्यू करेगी और इस पर कई मंत्रालयों और राज्यों से परामर्श लिया जाएगा, और उसके बाद ही आगे इस पर कार्यवाही होगी। सरकार ने भारत को 2070 तक कार्बन न्यूट्रल देश बनाने का लक्ष्य रखा है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तेजी से काम किए जा रहे हैं।
यहां हमने इस बात का विश्लेषण किया है कि अगर भारत में डीजल गाड़ियों पर बैन लगा दिया जाए तो हमारे सामने कौनसी बड़ी चुनौतियां आएंगी, जिसके बारे में हम जानेंगे आगेः
कमर्शियल व्हीकल्स के लिए ज्यादा मुश्किल
आमतौर पर सभी कमर्शियल वाहन चाहें फिर वो छोटो ट्रक हों, बस, या कैब हों, सभी डीजल इंजन से चलने वाले होते हैं। आज डीजल फ्यूल की प्राइस पेट्रोल के काफी करीब पहुंच चुकी है, वहीं डीजल गाड़ियां ज्यादा माइलेज देती हैं और ज्यादा पावरफुल भी होती हैं। चुंकि कमर्शियल वाहनों का इस्तेमाल लंबी दूरी तक सामान पहुंचाने में होता है, ऐसे में ज्यादा माइलेज से इन पर हर महीने अच्छी बचत हो जाती है। डीजल इंजन ज्यादा पावरफुल होने से कमर्शियल वाहनों में ज्यादा वजन आसानी से ले जा सकते हैं और ये खराब रास्तों पर से भी आराम से गुजर जाते हैं।
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कुछ जगह ऐसी होती हैं जहां आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता है और इसका एक उदाहरण पहाड़ी एरियां को ले सकते हैं, यहां पर आवश्यक वस्तुओं को पहुंचाने के लिए डीजल से चलने वाले फोर-व्हीलर कमर्शियल वाहन ही एकमात्र सोल्यूशन है। ऐसी जगह अभी इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर स्विच होने के हिसाब तैयार नहीं है और इन लोकेशन पर एलपीजी की डिमांड को भी पूरा करने में काफी परेशानी आ सकती है।
इसके अलावा कमर्शियल वाहनों में निवेश लंबे समय तक इस्तेमाल के लिए किया जाता है, और डीजल इंजन ये साबित कर चुकें हैं वो लंबे समय तक इस्तेमाल के लिए बने हैं और आखिर तक अच्छे से काम करते हैं। अगर कम समय में डीजल इंजन पर बैन लगाया जाता है और कमर्शियल वाहन खरीद चुके ग्राहकों को कोई वित्तीय सहायता नहीं दी जाती है, तो इनके मालिकों की फाइनेंशियल कंडिशन पर इसका असर पड़ सकता है।
बीएस6 डीजल इंजन पर कंपनियों का निवेश
डीजल वाहनों पर निवेश की बात करें तो यह कंपनियों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। हुंडई, टाटा, महिंद्रा और एमजी जैसी कुछ कंपनियों ने अपनी डीजल कारों को नए बीएस6 फेज2 एडिशन नॉर्म्स के अनुरूप अपग्रेड किया हैं, क्योंकि इनको मार्केट में अच्छी डिमांड मिल रही है। हमारा मानना है कि ये ब्रांड जब तक मार्केट पूरी तरह से इलेक्ट्रिक व्हीकल्स पर शिफ्ट नहीं हो जाता, तब तक डीजल इंजन वाली गाड़ियां उतारना जारी रखेंगे। डीजल पर बैन लगने से इन कंपनियों का निवेश बर्बाद हो जाएगा, जिससे इनके बिजनेस पर खराब असर पड़ सकता है। हालांकि डीजल कारों की बाजार में हिस्सेदारी काफी कम हो गई है, लेकिन एसयूवी और बड़ी कारों में अभी भी डीजल इंजन ज्यादा पॉपुलर है। ऐसे में इस पॉलिसी से प्रभावित होने वाले पक्षों को लंबा समय देने की जरूरत है, ताकि निवेशक भारत को एक खराब निवेश के नजरीए से ना देखें।
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हाइब्रिड और ईवी अभी नहीं है ज्यादा पॉपुलर
स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक कारें इन डीजल वाहनों का समाधान और रिप्लेसमेंट हो सकती हैं, लेकिन 2027 तक ऐसा होना संभव है। अभी इलेक्ट्रिक कारों के इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह से तैयार नहीं हुए हैं, जबकि हाइब्रिड टेक्नोलॉजी अभी भी अधिकांश ग्राहकों के लिए काफी महंगी है। ज्यादातर मेट्रो सिटीज में काफी सारे चार्जिंग स्टेशन लग चुके हैं, लेकिन लोगों में इलेक्ट्रिक व्हीकल की रेंज को लेकर अभी भी कई इश्यू हैं।
हाइब्रिड कारें भी डीजल गाड़ियों की तरह अच्छा माइलेज देती हैं, लेकिन इनका पावर और टॉर्क आउटपुट डीजल व्हीकल्स जितना अच्छा नहीं है। इसके अलावा हमारे टेस्ट में यह भी जानकारी सामने आई है कि डीजल गाड़ियां फुल टैंक में हाइब्रिड व्हीकल से ज्यादा रेंज देती है।
वर्तमान में भारत में चार स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड कारेंः मारुति ग्रैंड विटारा, टोयोटा हाइराइडर, होंडा सिटी हाइब्रिड और टोयोटा इनोवा हाईक्रॉस बिक्री के लिए उपलब्ध है। इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड गाड़ियों के कम ऑप्शन, इनकी रेंज की चिंता, ज्यादा प्राइस और विश्वसनीय चार्जिंग इंफ्रास्टक्चर के अभाव के चलते लोगों का रूझान इनकी तरफ अभी कम है। हालांकि निकट भविष्य में यह आंकड़ा बढ़ सकता है, लेकिन तब तक हमें इंतजार करना होगा।
हम भारत को कार्बन न्यूट्रल देश बनाने की योजना से सहमत हैं लेकिन इसे चरणबद्ध और विचारशील तरीकों से करने की जरूरत है। सरकार को लोगों को डीजल गाड़ियों के विकल्प और उन्हें वित्तीय सहायता देने के बाद ही इस पर कोई फैसला लेना चाहिए।