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भारत में 6 एयरबैग की अनिवार्यता से भी कारों में सेफ्टी ज्यादा नहीं होगी पुख्ता, ये हैं कारण

प्रकाशित: जनवरी 24, 2022 04:40 pm । भानु

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कुछ सालों से व्हीकल सेफ्टी को लेकर अब काफी ज्यादा महत्वता दी जा रही है और इसी के चलते अब सरकार की कार मैन्युफैक्चरर्स से लगातार कारों में अधिक से अधिक सेफ्टी फीचर्स स्टैंडर्ड देने को कह रही है। हाल ही में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने 1 अक्टूबर 2022 से कारों में साइड और कर्टेन एयरबैग्स को अनिवार्य करने के लिए एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया है। ये फैसले कारों को सेफ बनाने के लिए काफी जरूरी भी हैं जिनका स्वागत किया जाना चाहिए मगर एयरबैग बढ़ा देने से पैसेंजर की सुरक्षा ज्यादा सुनिश्चित नहीं होगी। कारों में 6 एयरबैग अनिवार्य करने के बावजूद सेफ्टी में कौनसी बाधाएं आएंगी पेश ये आप नीचे दिए गए पॉइन्ट्स के जरिए समझें:

हर मास मार्केट कार में नहीं दिए जा सकते हैं साइड एयरबैग्स, इन्हें फिट करना मुश्किल

कारों में एयरबैग फिट करना स्पीकर्स फिट करने जितना आसान नहीं है। कारों में साइड एयरबैग के स्टोरेज और प्लेसमेंट के लिए काफी रिसर्च करने पड़ते हैं ताकी जब उन्हें फिट किया जाए तो वो कारगर भी साबित हो। पैसेंजर के लिए फ्रंट एयरबैग कार के डैशबोर्ड में फिट किया जाता है और ड्राइवर साइड एयरबैग स्टीयरिंग में होता है। वहीं साइड और कर्टेन एयरबैग्स फ्रंट सीट और विंडोलाइन के टॉप में फिट किए जाते हैं। कई मास मार्केट कारों में किसी भी वेरिएंट में 6 एयरबैग नहीं दिए जा रहे हैं क्योंकि इन्हें फिट करना आसान नहीं है। ऐसे में साइड और कर्टेन एयरबैग को फिट करने के लिए मैन्युफैक्चरर्स को कारों के स्ट्रक्चर में बदलाव करने होंगे जो काफी खर्चीला साबित होगा। उदाहरण के तौर पर मारुति वैगन-आर,रेनो क्विड,मारुति ऑल्टो,महिंद्रा बोलेरो और हुंडई सेंट्रो में इस तरह के बदलाव करने ही होंगे। 

Hyundai Santro
Renault Kiger

ज्यादा एयरबैग देने से नहीं आएगा एक अन्स्टेबल बॉडी में चेंज

कुछ जगहों पर ज्यादा एयरबैग्स देना सही माना जा सकता है मगर इससे कारें ज्यादा सेफ होगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। भारत में ‘Safe Cars For India’ कैंपेन के तहत ग्लोबल एनकैप कारों का क्रैश टेस्ट करती है और उन्हें फिर सेफ्टी रेटिंग दी जाती है जिसमें कई फैक्टर्स शामिल होते हैं। यहां कारों का 64 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड पर फ्रंटल क्रैश टेस्ट किया जाता है। 

फिलहाल कई नई कारों में ड्युअल एयरबैग स्टैंडर्ड दिए जाने के बाद से उन्हें अच्छी रेटिंग मिलने लगी है मगर कई ऐसी कारें भी है जिनकी बॉडी को अस्थिर पाया गया है। इसके कुुछ उदाहरण नीचे देखें:

मॉडल

ग्लोबल एनकैप सेफ्टी रेटिंग

बॉडी शेल इंटीग्रिटी

रेनो ट्राइबर

4 स्टार्स

अस्थिर

किआ सेल्टोस

3 स्टार्स

अस्थिर

टाटा टिगॉर ईवी

4 स्टार्स

अस्थिर

ये कहा जा सकता है कि एयरबैग्स के मुकाबले अच्छे बॉडी स्ट्रक्चर वाली कार सड़क दुर्घटना के दौरान पैसेंजर्स को ज्यादा सेफ रख सकती है। हालांकि एयरबैग्स से बॉडी के कुछ उपयोगी अंगो को सेफ्टी मिल जाती है मगर कार की बॉडी अच्छी नहीं होगी तो फिर भी दुर्घटना के दौरान पैसेंजर्स चोटिल हो सकतेे हैं। स्टेबल बॉडीशेल के कारण हाल के समय में टाटा और महिंद्रा की कारों को ग्लोबल एनकैप से काफी शानदार रेटिंग मिली है। वहीं ऐसी कारें साइड इंपेक्ट क्रैश टेस्ट में भी अच्छा परफॉर्म करने का दमखम रखती है। 

Maruti S-Presso

दूसरी तरफ इंडिया की मारुति और हुंडई जैसे टॉप 2 ब्रांड्स कारों को सेफ बनाने के मोर्चे पर अभी काफी पीछे चल रहे हैं। अभी तक तो मारु​ति के सबसे ज्यादा अफोर्डेबल मॉडल्स में ड्युअल एयरबैग्स का फीचर स्टैंडर्ड ही नहीं दिया गया है। हालांकि हुंडई अपनी कुछ कारों के टॉप वेरिएंट्स में 6 एयरबैग तक ऑफर कर रही है मगर कंपनी कारों का स्ट्रक्चरल डिजाइन सहीं नहीं होने के कारण उन्हें क्रैश टेस्ट में अच्छा स्कोर मिल ही नहीं रहा है। उदाहरण के लिए बताए तो 2020 में हुंडई ग्रैंड आई10 निओस को 2 स्टार सेफ्टी रेटिंग दी गई और उसकी बॉडी को अस्थिर बताया गया जबकि ग्लोबल एनकैप से टाटा पंच को 5 स्टार सेफ्टी रेटिंग मिल चुकी है। 

ये भी बता दें कि जब कारों का टेस्ट करने की बात आती है तो इस मामले में ग्लोबल एनकैप फिर भी थोड़ी ढील दे देती है मगर यूरो एनकैप और आसियान एनकैप काफी मोर्चों पर कारों का टेस्ट करने के बाद ही उन्हें सेफ्टी रेटिंग देती है। बता दें कि यूएसए,यूके,ऑस्ट्रेलिया,फिलिपींस और इंडोनेशिया जैसे देशों में कई कारों में 6 एयरबैग जैसे फीचर्स दिए ही नहीं जाते हैं। 

एक्टिव सेफ्टी फीचर्स ज्यादा कारगर

कारों में दो तरह के सेफ्टी फीचर्स: एक्टिव और पैसिव दिए जाते हैं जहां एयरबैग्स पैसिव कैटेगरी में आते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये तभी खुलते हैं जब एक्सिडेंट हो चुका होता है, ऐसे में दुर्घटना से बचने के लिए एक्टिव कैटेगरी के फीचर्स ही काम में आते हैं। ऐसे एडिशनल सेफ्टी बैग्स भी तब ही काम आएंगे जब घटना घट चुकी होगी। दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल या एबीएस जैसे एक्टिव सेफ्टी फीचर्स दुर्घटना होने ही नहीं देने में मदद कर सकते हैं। 

यह भी पढ़ें: ग्लोबल एनकैप क्रैश टेस्ट में इन इंडियन कारों की हुई परीक्षा,जानिए किसे मिली कितनी रेटिंग

कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां कारों के एक्टिव सेफ्टी फीचर्स के कारण कई जिंदगियां बची भी है जबकि 6 एयरबैग भी ये काम नहीं कर पाए। ऐसे में भारत सरकार को कंपनियों से कारों में ज्यादा से ज्यादा एक्टिव सेफ्टी फीचर्स देने पर दबाव बनाना चाहिए। कई देशों में जहां काफी सख्त एनकैप क्रैश टेस्ट होते हैं वहां कारों में केवल ड्युअल एयरबैग होने के कारण भी उन्हें अच्छी सेफ्टी रेटिंग मिल जाती है क्योंकि इनमें ऑटोनॉमस इमरजेंसी ब्रेकिंग,पेडेस्ट्रियन डिटेक्शन और लेन असिस्ट जैसे फीचर्स दिए गए होते हैं। 

यह भी पढ़ें: एडीएएस क्या है? कैसे काम करता है? और भारत में इस फीचर के सामने कौनसी चुनौतियां आएंगी? जानिए ऐसे तमाम सवालों के जवाब

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काफी महंगी हो जाएंगी कारें 

कारों में साइड एयरबैग्स देने से इनकी इनपुट कॉस्ट काफी बढ़ जाएगी जिससे सीधे सीधे कारों के दाम भी बढ़ जाएंगे। एक ड्युअल एयरबैग वाली कार के मुकाबले 6 एयरबैग वाली कार करीब 50,000 रुपये तक महंगी हो सकती है। एक्सिडेंड होने के बाद एयरबैग्स जब खुल जाते हैं तो उसके बाद वो किसी काम के नहीं र​हते हैं और कस्टमर्स को उन्हें रिप्लेस कराना पड़ता है। ऐसे में ये चीज भी उनके लिए काफी महंगी साबित होगी। यदि इंश्योरेंस कंपनी इसका भुगतान कर देती है तो बाद में कस्टमर्स को ज्यादा प्रीमियम भरने पड़ेंगे। 

तो उपर बताए गए कारणों से ये जाहिर होता है कि सरकार को कार मैन्युफैक्चरर्स से कारों के स्ट्रक्चर में सुधार करते हुए उनमें ज्यादा एक्टिव सेफ्टी फीचर्स देने का दबाव बनाना चाहिए ना कि एक्सट्रा एयरबैग्स देने का सुझाव देकर इतिश्री कर लेनी चाहिए।  

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