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बीएच रजिस्ट्रेशन के लिए ज्यादा पैसे चुकाएं ? केरला हाईकोर्ट के फैसले को पूरी तरह समझिए यहां

प्रकाशित: जनवरी 15, 2025 06:45 pm । भानु

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Tax on BH-Registered Number Plates: Who Decides the Tax?

हाल ही में केरला हाईकोर्ट ने भारत (बीएच) नंबर प्लेट रजिस्ट्रेशन और उनसे जुड़े मोटर व्हीकल टैक्स के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय जारी किया है। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बीएच नंबर प्लेट वाली कारों को उस राज्य द्वारा निर्धारित टैक्स रेट के अनुसार मोटर व्हीकल टैक्स का भुगतान करना होगा जहां वे रजिस्टर्ड हैं, इस बात पर जोर देते हुए कि मोटर व्हीकल टैक्स एक राज्य का क़ानून है और केंद्र सरकार टैक्स रेट्स का निर्धारण नहीं कर सकती है। इस निर्णय से यह चिंता पैदा हो गई है कि इन टैक्स को निर्धारित करने का अधिकार किसे है-केंद्र सरकार या राज्य। बीएच नंबर प्लेट रजिस्ट्रेशन को लेकर क्या हो रहा है, और यह महत्वपूर्ण क्यों है? इस बारे मे विस्तार से जानिए इस रिपोर्ट में:

बीएच नंबर प्लेट के बारे में जानिए 

भारत सरकार ने जॉब ट्रांसफर या किसी अन्य कारण से व्हीकल ओनर के नए राज्य में ट्रांसफर होने पर री: रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता को समाप्त करने के लिए भारत सीरीज (बीएच) नंबर प्लेट की शुरुआत की।

इससे व्हीकल्स के इंटरस्टेट मूवमेंट में समय की बचत भी होती है। 

बीएच नंबर प्लेट्स:

  • योग्यता:

-सैन्यकर्मी

-केंद्र या राज्य सरकार में कर्मचारी 

-चार या उससे ज्यादा राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में ऑफिस वाली प्राइवेट ऑर्गेनाइजेशन में काम करने वाला व्यक्ति बीएच नंबर प्लेट के लिए आवेदन कर सकता है। 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बीएच सीरीज़ विशेष रूप से प्राइवेट पैसेंजर्स व्हीकल्स के लिए है।

  • री-रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं: 

-मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 47 के अनुसार, नॉन-बीएच नंबर प्लेट वाले वाहन को 12 महीने से अधिक समय के लिए दूसरे राज्य में ट्रांसफर होने पर फिर से रजिस्ट्रेशन किया जाना चाहिए।

-बीएच नंबर प्लेट नए राज्य में री:रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता को खत्म कर देती है, जिससे व्हीकल की निर्बाध आवाजाही संभव हो जाती है।

पैसे और समय की बचत: री: रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता को समाप्त करके, बीएच सीरीज इंटरस्टेट कार मूवमेंट को आसान, तेज और अधिक कॉस्ट इफेक्टिव बनाती है।

  • बीएच नंबर प्लेट्स के लिए टैक्स रेट्स

सेंटर मोटर व्हीकल (20वां संशोधन), नियम, 2021, बीएच सीरीज के व्हीकल्स के लिए लागू मोटर व्हीकल टैक्स रेट्स को निर्दिष्ट करता है। ये दरें कार की इनवॉइस प्राइस पर निर्भर करती हैं।

कार की कीमत

पेट्रोल कारों पर मोटर व्हीकल टैक्स (इनवॉइस प्राइस का प्रतिशत)

डीजल कारों पर मोटर व्हीकल टैक्स (इनवॉइस प्राइस का प्रतिशत)

इलेक्ट्रिक कारों पर मोटर व्हीकल टैक्स (इनवॉइस प्राइस का प्रतिशत)

10 लाख रुपये से कम

8%

10%

6%

10 से 20 लाख रुपये के बीच

10%

12%

8%

20 लाख रुपये से ज्यादा

12%

14%

10%


नोट: डीजल कारों पर 2 प्रतिशत अतिरिक्त चार्ज लगाया जाता है जबकि इलेक्ट्रिक कारों को 2 प्रतिशत का डिस्काउंट दिया जाता है। 

क्या है केरला का मोटर व्हीकल टैक्स 

केरला मोटर व्हीकल टैक्सेशन अधिनियम, 1976, चालान मूल्य के आधार पर विभिन्न टैक्स ब्रैकेट बताता है - वह मूल्य जिस पर मैन्यूफैक्चरर द्वारा व्हीकल बेचा जाता है। प्हीकल की कॉस्ट के साथ टैक्स रेट्स लगातार बढ़ती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि अधिक कीमत वाले व्हीकल टैक्स में अधिक योगदान देते हैं। इसका विवरण इस प्रकार से है:

कार की कीमत

मोटर व्हीकल टैक्स (इनवॉइस प्राइस का प्रतिशत)

5 लाख रुपये से कम

10%

5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच

13%

10 लाख रुपये से 15 लाख रुपये के बीच

15%

15 लाख रुपये से 20 लाख रुपये के बीच

17%

20 लाख रुपये से ज्यादा

22%

इलेक्ट्रिक व्हीकल्स

5%

नोट: चाहे इनवॉइस कॉस्ट कितनी भी हो, इलेक्ट्रिक कारों पर फ्लैट 5 प्रतिशत लगता है टैक्स।

विवाद: कौन तय करेगा टैक्स?

The Conflict: Who Decides the Tax?

इस मुद्दे का मूल यह है कि मोटर व्हीकल रजिस्ट्रेशन के लिए कर दरें निर्धारित करने की शक्ति केंद्र सरकार या राज्य सरकार के पास है या नहीं। केरल उच्च न्यायालय ने संवैधानिक प्रावधानों की ओर इशारा किया:

केंद्र सरकार प्राधिकरण 

केंद्र सरकार के पास भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 और सूची III की प्रविष्टि 35 के तहत मैकेनिकल तौर पर चलने वाले व्हीकल्स के लिए सामान्य टैक्सेशन टैक्सेशन प्रिंसिपल स्थापित करने की क्षमता है।

राज्य सरकार प्राधिकरण 

राज्यों के पास विशिष्ट टैक्स लगाने की विशेष शक्ति है, जो अनुच्छेद 246 और सूची II की प्रविष्टि 57 के अंतर्गत आती है। 

कोर्ट का फैसला:

नतीजतन, कोर्ट ने निर्णय लिया कि बीएच सीरीज व्हीकल पर केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित टैक्स रेट्स 

 असंवैधानिक एवं अवैध हैं। वर्तमान में, केरल राज्य सरकार को अपने कानून के अनुसार टैक्स लगाने की आजादी है। हालांकि, उन्हें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित प्रमुख नियमों का पालन करना होगा।

नतीजा:

अंत में, याचिकाकर्ताओं को बीएच श्रृंखला रजिस्ट्रेशन की अनुमति दी गई, लेकिन उन्हें केरल मोटर व्हीकल टैक्सेशन अधिनियम 1976 के आधार पर टैक्स का भुगतान करना पड़ा, जिससे केंद्रीय सिद्धांतों का पालन बनाए रखते हुए टैक्सेशन में राज्य की स्वायत्तता को मजबूत किया गया।  

क्या केरल की याचिका सही है?

Is Kerala’s Petition Correct?

भारतीय संविधान के अनुसार, केरल का अनुरोध कानूनी रूप से मजबूत है क्योंकि केवल राज्य सरकारें ही मोटर व्हीकल्स पर टैक्स निर्धारित और एकत्र कर सकती हैं।

हालांकि, केरल और केंद्र सरकार के बीच इस असहमति के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

कस्टमर्स पर टैक्स के बोझ को बढ़ाना या कम करना:चूंकि केरल में टैक्स रेट्स ज्यादा है , इसलिए वहां वाहन खरीदने वालों को अन्य राज्यों की तुलना में अधिक टैक्स चुकाना पड़ता ​है। दूसरी ओर, केरल की याचिका हिमाचल और हरियाणा जैसे राज्यों में रहने वाले व्हीकल ओनर्स के लिए अनुकूल है, जहां टैक्स रेट्स केंद्र द्वारा लगाए गए शुल्क से कम है। यहां भिन्नता का एक उदाहरण दिया गया है:

 

सेंट्रल चार्ज के अंतर्गत ऑन रोड कीमत (8%)

केरला के ग्रा​हकों के लिए ऑन रोड कीमत (13%)

हरियाणा के ग्राहकों के लिए ऑन रोड कीमत(5%) 

हिमाचल के ग्राहकों के लिए ऑन रोड कीमत(6%) 

एक्स-शोरूम कीमत 

6 लाख रुपये

6 लाख रुपये

6 लाख रुपये

6 लाख रुपये

टैक्स अमाउंट 

8,000

78,000

30,000

36,000

इंश्योरेंस 

34,832

34,832

34,832

34,832

ऑन रोड कीमत

6,42,832

7,12,832

6,64,832

6,70,832

उदाहरण के लिए हमनें टाटा टियागो एक्सटी पेट्रोल वेरिएंट की कीमत 6 लाख रुपये (एक्स-शोरूम) है। इस व्हीकल के टैक्स ब्रेकेट के बेस पर हरियाणा में ग्राहकों को सबसे कम टैक्स रेट का फायदा मिल रहा है जिससे कार की ऑन रोड कीमत भी कम पड़ती है। 

केरला में टैक्स रेट ज्यादा है जिससे यहां कार की ऑन रोड कीमत भी ज्यादा है। 

नोट:बीएच के तहत दिया जाने वाले टोटल टैक्स को 14 वर्षों में बांटा जा सकता है जहां ओनर हर दो साल में भुगतान करता है। इसलिए, 14वें साल तक हर दो साल में 8000 रुपये का भुगतान रोड टैक्स के रूप में करना होगा। जबकि, रेगुलर ​रजिस्ट्रेशन पर टैक्स का भुगतान पहले पंद्रह वर्षों में एक बार किया जाता है।

ऊपर दिया गया इंश्योरेंस अमाउंट उदाहरण के लिए हैं जो अलग भी हो सकता है। इंश्योरेंस कॉस्ट डीलरशिप के हिसाब से अलग होती है और अन्य फैक्टर्स से प्रभावित होती है।

एकरूपता का नुकसान: यह असहमति टैक्स रेट्स की एकरूपता को तोड़ देगी जो वर्तमान में बीएच सीरीज का आनंद लेती है, जिससे व्हीकल रजिस्ट्रेशन कॉस्ट में विसंगतियां पैदा होंगी।

राज्य के धन पर प्रभाव: जैसा कि ऊपर उदाहरण में देखा गया है कि केरल सरकार के लिए टैक्स पूल हाई टैक्स कलेक्शन के कारण बढ़ेगा , याचिका की मुख्य चिंता उचित तर्क पर आधारित है। इसके विपरीत, हरियाणा और हिमाचल जैसे अन्य राज्यों के लिए टैक्स पूल कम हो जाएगा क्योंकि रजिस्ट्रेशन रेट्स कम हैं। यदि केंद्रीय शुल्क का पालन किया जाता है तो टैक्स पूल सभी राज्यों के लिए समान रहेगा। निष्कर्ष यही निकलता है कि इस असहमति को कैसे संबोधित किया जाता है यह एक महत्वपूर्ण चीज होगी क्योंकि यह आकलन करेगा कि राज्य अपने संबंधित बजट का कितना प्रबंधन करने में सक्षम होंगे। इसलिए, भारत में आर्थिक स्थिरता और प्रत्येक राज्य की स्वायत्तता दोनों को बनाए रखने के लिए एक संतुलित समाधान खोजना महत्वपूर्ण है।

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