कितना महत्व रखती है आपकी कार को मिली एनकैप सेफ्टी रेटिंग, जानिए इस बारे में सबकुछ
संशोधित: नवंबर 15, 2021 10:11 am | भानु
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दुनिया में किसी नई कार के बिकने से पहले उसे सेफ्टी के न्यूनतम मानकों पर खरा उतरना पड़ता है और इसके लिए इसका आधिकारिक तौर पर क्रैश टेस्ट किया जाता है। ये सेफ्टी स्टैंडर्ड्स किसी खास क्षेत्र या देश के आधार पर अलग अलग हो सकते हैं । लोअर व्हीकल सेफ्टी स्टैंडर्ड्स वाले देशो में सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती है, जो अक्सर घातक होती हैं। ऐसे में इनपर लगाम लगाने के लिए न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (एनकैप) शुरू किया गया जहां पूरी दुनिया में ये कारों का अलग अलग मोर्चो पर सेफ्टी टेस्ट किया जाता है। ग्लोबल एनकैप प्रोग्राम भी इंडियन कारों का सेफ्टी टेस्ट करने में एक अहम रोल अदा करती है और कस्टमर्स को इनके परिणामों से अवगत कराती है।
भारत में अब समझी जाने लगी है कार सेफ्टी की अहमियत
भारत में एक लंबे अर्से से व्हीकल सेफ्टी स्टैंडर्ड का स्तर चिंताजनक रूप से कम था, हालांकि ये संयुक्त राष्ट्र के मौजूदा नियमों के अनुरूप थे। भारत में अब भी ऐसी कई कारें बिक रही है एनकैप क्रैश टेस्ट में जीरो रेटिंग ला चुकी है। ग्लोबल एनकैप की ओर से कई मास मार्केट इंडियन कारों का क्रैश टेस्ट किया जाता है जो भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों में कारों को सुरक्षित बनाने के लिए 2014 से एक अभियान चला रहे हैं। जब मारुति सुजुकी स्विफ्ट और हुंडई i10 सहित कई मास मार्केट कारों के पहले बैच का क्रैश टेस्ट किया गया, तो उनमें से लगभग सभी को 0 स्टार मिले क्योंकि उनमें ड्राइवर एयरबैग तक नहीं दिया जा रहा था।
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कैसे होती है यहां कारों की टेस्टिंग
ग्लोबल एनकैप द्वारा किया जाने वाला सबसे प्रमुख टेस्ट फ्रंट ऑफसेट क्रैश टेस्ट होता है जहां दो कारों के बीच 64 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार के साथ आपस में भिड़ंत कराई जाती है। हालांकि भारत सरकार ने स्पीड लिमिट 56 किलोमीटर प्रति घंटा कर रखी है और इस 8 किलोमीटर प्रति घंटे के अंतर के बीच जिंदगी और मौत को तय करना एक बड़ा फर्क पैदा कर देता है। सबसे चिंताजनक बात ये है कि यहां अब भी कारों का असल टेस्ट नहीं किया जाता है और उन्हें कागजों में ही पास कर दिया जाता है।
अच्छी बात ये भी है कि ग्लोबल एनकैप से अच्छा स्कोर प्राप्त करने वाली कारों को बाद में यहां कम से कम सेफ्टी के पैमानों पर गुजरना होता है। ऐसे में कार लेने के इच्छुक ग्राहकों में भी सेफ कारें खरीदने की इच्छा पैदा होती है भले ही सरकार अच्छे सेफ्टी नॉर्म्स तय करने में ढिलाई बरत रही हो।
ग्लोबल एनकैप में कारों को केवल ऑफ सेट क्रैश टेस्ट के आधार पर स्टैंडर्ड रेटिंग दी जाती है। वैसे तो ग्लोबल एनकैप साइड इंपेक्ट क्रैश टेस्ट भी करती है। मगर ये फ्रंट ऑफसेट क्रैश टेस्ट में 5 स्टार सेफ्टी रेटिंग पाने वाली कारों के लिए ही रिजर्व रखा जाता है और कभी कभी कार मैन्युफैक्चरर्स की मांग पर भी ये कर लिया जाता है। इस टेस्ट में 50 किमी प्रति घंटे की स्पीड से समान वजन और साइज वाले किसी दूसरे व्हीकल से टेस्ट किए जाने वाले मॉडल को ड्राइवर साइड से भिड़ाया जाता है।
ग्लोबल एनकैप सेफ्टी रेटिंग की महत्वता क्या है?
ग्लोबल एनकैप का रेटिंग सिस्टम दो पैमानों पर फोकस्ड रहता है। पहला,फ्रंट सीट पर एडल्ट पैसेंजर की सेफ्टी और दूसरा बैक सीट पर चाइल्ड सेफ्टी। ऐसे में कारों को मिलने वाली ओवरऑल सेफ्टी रेटिंग इन दो पैमानों पर ही आधारित होती हैं। सिंगल स्टार रेटिंग के लिए कार में कम से कम एक एयरबैग को भी यहां अनिवार्य कर रखा है।
एडल्ट प्रोटेक्शन में क्रैश टेस्ट के लिए उपयोग में ली गई डमी को लगी चोटों को देखा जाता है जहां सिर और गर्दन,छाती,शरीर की सबसे बड़ी हड्डी,पेलविस तथा टांगो और पैर की सेफ्टी को देखा जाता है। यदि कार में सीटबेल्ट रिमाइंडर,4 चैनल एबीएस जैसे फीचर्स दिए जा रहे हैं और साइड इंपेक्ट प्रोटेक्शन टेस्ट में ये अच्छा परफॉर्म करती है तो फिर कार को एडिशनल पॉइन्ट्स भी दिए जाते हैं। इसी तरह बच्चो की सेफ्टी को कार की रियर सीट पर उल्टी दिशा में एक 18 महीने और एक 3 साल के बच्चे की डमी रखकर किया जाता है और यदि कार में थ्री-पॉइंट सीटबेल्ट, आईएसओफिक्स चाइल्ड सीट एंकर और चाइल्ड रेस्ट्रेंट सिस्टम जैसे फीचर्स दिए गए हों तो फिर उसे एक्सट्रा पॉइन्ट्स भी मिलते हैं।
फाइनल क्रैश टेस्ट रिपोर्ट में स्कोर और रेटिंग देते समय ये भी बताया जाता है कि कार की बॉडी स्थिर थी या नहीं और क्या ये एक्सट्रा वजन झेलने में सक्षम है कि नहीं। कई मॉडल्स अच्छे सेफ्टी फीचर्स होने के बावजूद इस टेस्ट में फेल हो जाते हैं जिससे उनकी रेटिंग पर प्रभाव पड़ता है।
हर मॉडल को क्यों नहीं मिलती है एनकैप सेफ्टी रेटिंग
ग्लोबल एनकैप स्वायत्त संस्था है जहां कारमेकर्स के लिए अपनी कारें टेस्ट के लिए भेजना बिल्कुल अनिवार्य नहीं है। ये संस्था कारों में बेसिक सेफ्टी की जांच करने के लिए उसके बेस मॉडल को खरीदती है जिससे ये मालुम चल जाता है कि ये कितनी सेफ है। हालांकि ब्रांड्स भी अपनी ओर से यहां कारें भेजते हैं। इसके अलावा ग्लोबल एनकैप टॉप वेरिएंट्स की भी टेस्टिंग करती है ताकि उनमें किसी बात की कमी का पता लग जाता है।
ग्लोबल एनकैप के स्टैंडर्ड प्रोसेस के अनुसार जब कोई कारमेकर अपनी ओर से ही किसी मॉडल का टेस्ट कराना चाहे तो एनकैप या तो शोरूम या फिर मैन्युफैक्चरिंग प्लांट से रेंडम मॉडल चुन लेती है। ऐसा करने से कारमेकर को अपना बेस्ट मॉडल इन्हें सौंपकर अच्छी रेटिंग पाने का मौका ही नहीं मिलता है और इसमें किसी तरह के भ्रष्टाचार की संभावना भी खत्म हो जाती है।
यहां तक की कारों की टेस्टिंग पर होने वाला खर्च भी मैन्युफैक्चरर को ही उठाना पड़ता है जिससे काफी ब्रांड्स इससे बचने के लिए अपने मॉडल्स यहां भेजते ही नहीं है। ऐसे में कहीं ना कहीं उनमें ये भावना भी रहती है कि इतना खर्च करके भी कहीं उनकी कार को अच्छी रेटिंग नहीं मिली तो क्या होगा।
क्या ग्लोबल एनकैप की रेटिंग्स का वाकई मिलता है फायदा
जब से ग्लोबल एनकैप ने इंडियन कारों की टेस्टिंग कर उन्हें रेटिंग देनी शुरू की है तब से ग्राहक भी इसमें रुचि लेने लगे हैं और ये कस्टमर के कार खरीदने के फैसले पर भी काफी प्रभाव डाल रहा है। ऐसे में टाटा और महिंद्रा इस चीज को ध्यान में रखते हुए आज सेफ कारे बनानी शुरू कर दी है। टाटा नेक्सन देश की पहली मेड इन इंडिया सेफ कार का टैग प्राप्त कर चुकी है जिसे 5 स्टार सेफ्टी रेटिंग दी गई। वहीं महिंद्रा एक्सयूवी300 को ओवरऑल सेफ्टी स्कोर में 7 पॉइन्ट्स मिले हैं। अब इनके कई मॉडल्स को ग्लोबल एनकैप की ओर से कम से कम 4 स्टार सेफ्टी रेटिंग तो मिल ही रही है जिनमें टाटा ऑल्ट्रोज और महिंद्रा थार शामिल है। टाटा की हाल ही में लॉन्च हुई पंच एसयूवी को ग्लोबल एनकैप से 5 स्टार सेफ्टी रेटिंग मिली है। दूसरी तरफ मारुति ने भी कुछ सुधार किया है जहां उसकी विटारा ब्रेजा इस लिहाज से काफी अच्छी कारों में शुमार होती है।
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कारें सेफ तो हैं मगर फिर भी उन्हें हो सकता है नुकसान
यहां तक की 5 स्टार रेटिंग पाने वाली कारों में आपको पूरी सेफ्टी की गारंटी नहीं मिलती है। एक तरफ जहां ज्यादातर रोड एक्सिडेंट स्लो स्पीड पर होते हैं तो वहीं 64 किलोमीटर प्रति घंटेे से उपर की स्पीड पर होने वाले एक्सिडेंट जानलेवा साबित होते हैं। दुर्घटना में शामिल व्हीकल्स के वजन और साइज में अंतर और दुर्घटना के दौरान पड़ने वाला इंपेक्ट भी कई बार नतीजों को बदल सकता है। उदाहरण के लिए, एक कार और एक ट्रक के बीच किसी हाईवे पर भिड़ंत आमतौर पर घातक ही होता है।
अब और भी ज्यादा सेफ कारें तैयार करने को दी जा रही तरजीह
एनकैप टेस्टिंग और रेटिंग प्रोटोकॉल्स लगातार अपडेट होते हैं,ऐसे में आज अच्छी रेटिंग पाने वाली कार हो सकता है कल को उतनी सेफ नहीं पाई जाए। यहां तक कि अब ग्लोबल एनकैप 2022 मेंं टेस्टिंग प्रोटोकॉल्स को अपडेट करेगी जहां इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल का फीचर अनिवार्य कर दिया जाएगा।
आसियान (दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के लिए) और यूरो एनकैप भी ऑटो इमरजेंसी ब्रेकिंग जैसे सेफ्टी फीचर्स के आधार पर कारों को रेटिंग देती है। वे दुर्घटना के मामले में पैदल चलने वालों या साइकिल चालकों जैसे अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा के ध्यान में रखती हैं। ऐसे में अब महिंद्रा और एमजी जैसे ब्रांड्स एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम को अफोर्डेबल बना रही है। ये फीचर आने वाले समय में कारों की ओवरऑल सेफ्टी रेटिंग में सुधार लाने में काफी अच्छा रोल प्ले कर सकता है।
हालांकि कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि एक्सट्रा सेफ्टी फीचर्स से कारों की कीमत बढ़ जाएगी, मगर छोटी कारों की कीमत इतनी भी ज्यादा नहीं होती है कि यदि अच्छे फीचर्स मिलने के बाद उनकी प्राइस बढ़ भी जाए तो कम से कम सड़क दुर्घटनाओं में तो कमी आएगी।
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